अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है.
सब तारीफे अल्लाह के लिए है जो तमाम जहाँ का पालने वाला है, हम उसी की तारीफ़ करते है और उसी का शुक्र अदा करते है. अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक नहीं, वह अकेला है और उसका कोई साझी और शरीक नहीं. मुहम्मद (स.अ.व.) अल्लाह के बंदे और रसूल है.
अल्लाह कि बेशुमार रहमते और सलामती नाजिल हो उनके रसूल (स.अ.व.) पर और उनकी आल-औलाद और उनके साथियो पर.
•फिरकापरस्ती क्या है?
फिरकापरस्ती का मतलब है किसी की सोच, राय, बात या आमाल कि बुनियाद पर सबसे अलग होकर अपना एक गिरोह या जमात बना लेना. आज के इस माहोल में अगर आप नजर करे तो आपको मुस्लिम उम्मत में बहुत सारे फिरके मिलेंगे. कोई अपने आपको सुन्नी कहता है, कोई शिया, हनफ़ी, हम्बली, मालिकी, शाफई, देवबंदी, बरेलवी, कादरियाह, चिश्तियाह, अहमदिया, जाफरियाह, वगैरह वगैरह. हर एक फिरका एक दूसरे से मुहं मोड़कर अपना अपना मजहब बना लिया है. जबके उनके मजहब के कानून और आमाल देखे तो वह एक दूसरे से बिलकुल अलग है फिर भी अपने आपको मुसलमान कहते है. हर एक ने अपने अपने इमाम, किताबें, मस्जिदे, मदरसे, और मुसल्ली (नमाजी) बाँट लिए है और यहाँ तक कि अपनी पहचान के लिए पहनावे में कुछ ना कुछ खास बातें रख ली है जिसकी बुनियाद पर वह फिरका लोगो से अलग पहचान लिया जाए. बड़े हैरत कि बात यह है कि हर एक फिरका अपने आपको सिराते मुस्तकीम (सीधे रास्ते) पर जानता है और कहता है. उनके पास जो इस्लामी सोच है उससे वह खुश है. इस बात को अल्लाह तअाला ने कुरआन में कुछ इस तरह बयान किया है,
“जिन्हों ने अपने दीन के टुकडे टुकडे कर दिए और गिरोह (फिरको) में बंट गए, हर गिरोह (फिरका) उसी से खुश है जो उसके पास है” (सुर: रूम:३२)
हर फिरका दूसरे को गुमराह मानता है और अपने आपको सीधी राह पर जानता है. ये ही बात यहूद और नसारा में भी थी जिसे अल्लाह तअाला ने कुरआन में बताया है,
“यहूद ने कहा ‘नसारा किसी बुनियाद पर नहीं’ और नसारा ने कहा ‘यहूद किसी बुनियाद पर नहीं’ हालाकि वे दोनों अल्लाह तअाला कि किताब पढते है” (सुरह बकरह:११३)
•फिरकाबंदी कि वजह?
मुस्लिम उम्मत में जो फिरकाबंदी पैदा हुई उसकी तहकीक अगर कि जाए तो यह बुनियादी वजह मिलती है कि हमने अल्लाहताला के कुरआन को और रसूल (स.अ.व.) के फरमान को छोड दिया है. इन दोनों चीजों को छोडकर हमने अपने अपने इमाम, आलिम, मौलवी कि बातों को अपना लिया है और उनके कौल और हुक्मो को उस हद तक का दर्जा दिया है कि उनकी तमाम बातो को सच समझ लिया है. आम मुसलमान ने कभी यह कोशिश नहीं की के इन बातो को कुरआन और हदीस के मुकाबले में रखे या उसकी तहकीक करे. अगर दूसरे अल्फाज में कहा जाए तो हमने अपने आलिमो को ‘रब’ बना लिया है. अल्लाह तअाला कुरआन में फरमाते है:-
“उन्होंने अपने आलिमो और दरवेशों को ‘रब’ बना लिया है.(सुर: तौबा:३१)
यह आयत का साफ़ मतलब होता है कि किसी शख्श को इज्जत में वो मक़ाम देना के उसके हर कौल (शब्द) को आखरी कौल माना जाए तो वह उसकी इबादत करने के बराबर हुआ. क्योकि आखरी कौल तो सिर्फ अल्लाह तअाला का कौल मुबारक है और उसी की इबादत की जाती है. जब अल्लाह तअाला कोई फैसला कर देता है और उसे अपने रसूल (स.अ.व.) के जरिये उम्मत में उतारता है तो उसमे तब्दीली करने और शरई हद कायम करने का किसी और को हक नहीं.
अरब के अइम्मा इमाम अबू हनीफा (र.अ.), इमाम शाफई (र.अ.), इमाम मालिक (र.अ.) और इमाम इब्ने हम्बल (र.अ.) जिनकी ओर हम अपनी निस्बत करते है उन्होंने क्या इस्लाम को छोडकर अपना अलग मजहब बनाया था या बनाने का हुक्म दिया था? हरगिज नहीं बल्कि सभी इमामों का ये ही कौल था कि अगर हमारी बात कुरआन या हदीस कि बात से टकराये तो हमारी बातो को छोडकर कुरआन या हदीस कि बातों को सीने से लगा लेना. फिर हम उम्मत को क्या हुआ है कि हमें कुरआन कि आयत या सहीह हदीस मिलने के बावजूद सिर्फ अपनी जिद कि वजह से अपने इमामों और आलिमो कि बातों को अपनाये हुए है?
•फिरकाबंदी के नुक्सानात!
फिरकाबंदी का सबसे बड़ा नुक्सान यह है कि हम अल्लाह तअाला और उसके रसूल(स.अ.व.) से दूर हो जायेंगे. इस बात को कुरआन में कुछ इस तरह बयान किया है:-
“जिन लोगो ने अपने दीन के टुकडे टुकडे कर दिए और गिरोह (फिरकों) में बंट गए, (अय नबी) तुमको उनसे कुछ काम नहीं. उनका मामला बस अल्लाह के हवाले है. वही उन्हें बतलायेगा कि वे क्या कुछ करते थे.” (सुर: अल अन्आाम:१५९)
तो कुरआन कि इस आयत से मालूम हुआ कि अगर हम फिरके बनायेंगे तो अल्लाह तअाला और उसके रसूल(स.अ.व.) से दूर होकर गुमराह हो जायेंगे और गुमराही का मतलब है हमेशा के लिए जहन्नम, फिरकाबंदी कि वजह से हमारे अंदर हक(सच) को तलाश करने का जज्बा(तमन्ना) खत्म हो जाता है और हम अपने इमाम, पीर या आलिम की बातो को बिना कुरआन और हदीस कि दलाइल के हक(सच) मानने लगते है. फिर ना हम कुरआन समझने के लिए तैयार होते है और ना ही हदीस समझकर उस पर अमल करेने के लिए!
लोग फिरकाबंदी के घरों में अपने आप को बन्द करके अपने इमाम, पीर साहब या आलिम के कौल कि कुंडी लगा लेते है, फिर चाहे आप बाहर से उन्हें कितनी भी कुरआन कि आयत सुनाये या फरमाने रसूल(स.अ.व.) सुनाओ मगर वह उसको मानने के लिए तैयार नहीं होता और अपने बडो के कौल कि कुंडी खोलकर फिरकाबंदी के घर से बाहर निकलना ही नहीं चाहता!
फिरकाबंदी की वजह से हम मुसलमान लोग आपस में एक दूसरे से नफ़रत करने लगते है और फिर शैतान अपनी चल चलकर हमें आपस में लड़ाता है. हालाकि हम मुसलमान एक उम्मत है और अल्लाह तअाला ने हमें एक दीन “इस्लाम” दिया है जो बिलकुल सीधा सादा दीन है जिसे कुरआन में कुछ इस तरह बयान किया है:-
“तुम इब्राहीम के दीन को अपनाओ जो हर एक से अलग होकर एक (अल्लाह तअाला) के हो गए थे और मुशरिको में से ना थे” (सुरह आले इमरान:९५)
और दूसरी जगह अल्लाह तअाला फरमाते है:-
“इब्राहीम न यहूदी थे न नसरानी बल्के सीधे सादे मुसलमान थे और मुशरिक भी न थे.”(सुरह आले इमरान:६७)
•फिरकापरस्ती का हल (उपाय)
फिरकाबंदी का हल बताते हुए अल्लाह तअाला कुरआन में फरमाते है:-
“एे अहले किताब, आओ एक ऐसी बात कि ओर जो तुममे और हम में एक सामान है. वह यह कि हम अल्लाह के सिवा किसी और कि इबादत ना करे और ना उसके साथ किसी चीज को शरीक करे और ना हममें से कोई एक दूसरे को अल्लाह के सिवा किसी को रब बनाये. फिर यदि वो इससे मुंह मोड ले तो कह दो गवाह रहो हम तो ‘मुस्लिम’ है.” (सुर: आले इमरान:६४)
दूसरी जगह अल्लाह तअाला फरमाते है:-
“सब मिलकर अल्लाह कि रस्सी को मजबूती से पकडो और आपस मे फूंट पैदा न करो” (सुर: आले इमरान:१०३)
अल्लाह तअाला के रसूल(स.अ.व.) ने भी हमें एक रहने को कहा है और उनकी बुनियादी बात भी बतलाते हुए फरमाया है:-
“मै तुम्हारे दरमियान दो चीजे छोड़े जा रहा हूँ अगर तुम उन पर अमल करोगे तो कभी गुमराह नहीं होंगे, वह दो चीजे है अल्लाह कि किताब (कुरआन) और मेरी सुन्नत यानी मेरा तरीका (हदीस)!
(मोत्ता मालिक:२२५१, रिवायात अबू हुरैरह(रदी.)
अल्लाह तअाला ने हमें सिर्फ दो हुक्म मानने के लिए कहा है, जिसे कुरआन में बताया है कि:-
“अल्लाह कि इताअत करो और उसके रसूल (स.अ.व.) कि इताअत करो ताकि तुमपर रहम किया जाए.”(सुर: आले इमरान:१३२)
कुरआन कि यह आयत हमारे बिच के गिरोहबंदी के हल का तरीका ब्यान करती है.
•फिरकाबपरस्ती का अंजाम!
अल्लाह तअाला के कुरआन कि यह आयतें और रसूल(स.अ.व.) के फरमान के बावजूद अगर हम फिरकापरस्ती पर कायम रहे तो अल्लाह कुरआन में लोगो को आगाह करते हुए फरमाते है:-
“उस वक़्त को याद करो जब कि वे लोगो (पीर/इमाम/आलिमो) के पीछे चले थे अपने मुरीदो से अलग हो जायेंगे और अजाब उनके सामने होगा और उनके आपस के सारे नाते टूट जायेंगे. (सुर: अल बकरह:१६६)
याद रखो ! क़्यामत के दिन कोई किसी के काम न आएगा. सिर्फ जिद, वहम् और माहौल कि वजह से हक बात का इन्कार ना करो और तुम खूब जानते हो कि हक बात सिर्फ कुरान और हदीस है!
आज यह माहोल है कि अगर मैं कोई फिरके में सिर्फ इसलिए हूँ कि मैंने अपने बाप-दादा को ये ही करते और कहते देखा है तो जान लो अल्लाह तअाला कुरआन में फरमाते है:-
“जब उनसे कहा जाता है कि अल्लाह ने जो कुछ उतारा है उसके मुताबिक चलो, तो कहतें है, नहीं! हम तो उसी के मुताबिक चलेंगे जिस पर हमने बाप-दादा को पाया, क्या इस हाल में भी के उनके बाप-दादा ना-समझ और ना सही रास्ता जानते हो! (सुर: अल बकरह:१७०)
और दूसरी जगह अल्लाह तअाला फरमाते है:-
“जब उनसे कहा जाता है कि उस चीज कि तरफ आओ जो अल्लाह ने उतारी है (कुरआन) और रसूल (स.अ.व.) कि ओर तो वह कहते है ‘हमारे लिए वो ही काफी है जिस पर हमने अपने बाप दादा को पाया है. क्या यदि उनके बाप दादा कुछ भी ना जानते हो और ना सही रास्ते पर हो तब भी!” (सुर: अल माइदा:१०४)
•हमारी दावत:-
उम्मत के हर फिरके को हमारी दावत है कि हम अपने बनाये हुए मजहब को छोडकर अल्लाह के उस दीन कि ओर लौट आए जिस दीन के अहकाम और नियम मुकम्मल है. जिसे कुरआन और हदीस कि शक्ल में महफूज किया गया है और हर फिरका उसे हक जानता है. इसलिए हम अपने आमाल सिर्फ और सिर्फ कुरआन और सुन्नत के मुताबिक बनाये. हर एक फिरका अपना अपना लेबल छोडकर अपने आपको सिर्फ “मुसलमान” कहे और हर एक फिरका अपना अपना बनाया हुआ मजहब छोडकर अल्लाह का दीन जो कि इस्लाम है उसे अपनाए.
दिन में पांच बार हम अल्लाह से हर नमाज में दुआ करते है कि “हमें सीधे रास्ते पर चला” (सुरह फातिहा:५) तो जब अल्लाह ने सीधा रास्ता दिखाया है उससे हटकर हम क्यों फिरकाबंदी करके अपने आपको गुमराह कर रहे है और सीधे रास्ते से दूर हो रहे है?
अल्लाह कुरआन में फरमाते है:-
“उस चीज (कुरआन) को मजबूती से पकडे रहो जो तुम्हारी ओर वही कि जाती है, बेशक तुम सीधे रास्ते पर हो.” (सुर: अज जुखरुफ़:४३)
और दूसरी जगह:-
“बेशक तुम रसूलों में से हो, निहायत सीधे रास्ते पर.” (सुर:यासीन:३-४)
जब अल्लाह तअाला ने अपने रसूल (स.अ.व.) को सीधे रास्ते पर होने कि गवाही दी है तो हमें चाहिए कि हम भी अपने आपको रसूल(स.अ.व.) के हुक्मों और आमालो के मुताबिक चलकर सीधे रास्ते पर रहने कि कोशिश करनी चाहिए. हमारे लिए यही बेहतर है, दुनिया और आखिरत में कामयाब होने के लिए. कुरआन को समझो जिसे अल्लाह ने आसान किया हुआ है! और अल्लाह के रसूल(स.अ.व.) के फरमानो को मानो जो हदीस कि शक्ल में है! अल्लाह ने हमें दो हाथ दिए और रसूल(स.अ.व.) ने उसी दो हाथों में दो चीजे (कुरआन और हदीस) दी है. अल्लाह ने न हमें तीसरा हाथ दिया और ना ही रसूल(स.अ.व.) ने हमें तीसरी चीज दी है!
•°लौट आओ कुरआन और हदीस कि ओर अगर कामयाब होना चाहते हो|
•°तोड़ दो वो तमाम बंदिशे जो हमें एक दूसरे से अलग करती है|
•°छोड़ दीजिए वो तमाम बाते और अमल जो अल्लाह के कुरआन और रसूल(स.अ.व.) के फरमान के खिलाफ हो|
•°छोड़ दीजिए अपने-अपने आलिमों और मौलवियों कि किताबें और पकड़ लीजिए अल्लाह की किताब (कुरआन)हम इसी बुनियाद पर एक उम्मात बन सकते है और हमारे बिच मुहब्बत कायम हो सकती है!
हम अल्लाह तआला से दुआ करते है कि हमें इस उम्मत के बीच से फिरकापरस्ती खत्म करने कि समझ दे और दीन ए ‘इस्लाम’ पर हमें कायम रखे…. आमीन.
[अहले इल्म हजरात से गुजारिश है कि अगर वो कोई गलती पाएं तो मेरी इस्लाह करें!]
आपका दीनी भाई!
जाहिद राणा
फ़िरकपरस्ती छोड़ना अच्छी बात है लेकिन अपनी शिर्क की जड़ों से लगाव भी छोड़ना होगा। यह "राणा"क्या है? बिरादरीवाद भी छोड़ना होगा।
ReplyDeleteMaasha Allah Nice post...
ReplyDeleteमाशाअल्लाह good job
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