Wednesday, 16 March 2016

विज्ञान इंसान का शरीर और धर्म उसकी आत्मा!

विज्ञान के मायने ज्ञान के उस उसूल से है जो पदार्थो में छिपी अंतस शक्ति को खोजता है। वहीं धर्म (मज़हब) का ताल्लुक ज्ञान के उस उसूल से है, जो सोच के अंदर छिपी हुई आखीर ताक़त को खोजता है। धर्म और विज्ञान का कोई विरोध नहीं है। जो गुजर चुका, वह समझ में आ रहा है। पश्चिम यानी पाश्चात्य देशों ने जो संस्कृति दी वह अतिवादी रही। उसकी बुनियाद में विज्ञान तो रहा, लेकिन धर्म का महत्व गिरा है। तमाम धन-ऐश्वर्य और संसाधनों के बावजूद उसने अंतरात्मा की आवाज को खो दिया। आज आवश्यकता है, धर्म और विज्ञान के संतुलन की। विज्ञान सुविधा देता है, धर्म शांति देता है। धर्म और विज्ञान एक दूसरे के परिपूरक हैं। जैसे शरीर और आत्मा का कोई विरोध नहीं, वैसे ही धर्म और विज्ञान का कोई विरोध नहीं है।

विज्ञान मनुष्य का शरीर है और धर्म उसकी आत्मा। जो मनुष्य केवल शरीर के आधार पर जिएगा वह अपनी आत्मा को खो देगा। जो मनुष्य केवल आत्मा के आधार पर जिएगा उसका शरीर खोखला होता जाएगा। भविष्य तभी सुरक्षित रह सकता है, जब धर्म और विज्ञान का मिलन होगा। यह भी स्पष्ट है कि दोनों के संयोग में धर्म केंद्र में होगा, जबकि विज्ञान एक ढांचे  में महदूद होगा। धर्म ज़मीर होगा और विज्ञान उसका साथी। ध्यान रखें कि जैसे शरीर मालिक नहीं हो सकता है, वैसे विज्ञान भी मालिक नहीं हो सकता। अगर विज्ञान के युग में धर्म नहीं होगा, तो विज्ञान मौत का कारण बन जाएगा। विज्ञान बहुत अच्छा होते हुए भी एक इंतेहा है, जो हमेशा खतरनाक है। धर्म उसे संतुलन देकर इंसान को इसके खतरे से बचा सकता है। धार्मिक होना इंसान के मोक्ष (मगफिरत) का मज़बूत रास्ता है। विज्ञान के कई रूप है, जबकि धर्म का सिर्फ एक। नया खोजने की नहीं, उसको पहचानने की ज़रूरत है। आज विज्ञान और धर्म को एक साथ रखकर, भरपूर ज़रूरत इस बात की है कि दुनिया के राष्ट्रनायक, धर्म गुरु, वैज्ञानिक, चिंतक, साहित्यकार, समाजसेवी, कला प्रेमी और भी बहुत ऐसे लोग कुछ रचनात्मक कार्यो का संकल्प लेकर धर्म के रास्ते पर चलें। धर्म के रास्ते पर चलने वाले की कभी हार नहीं होती।

No comments:

Post a Comment