आज चन्द नास्तिकों को छोड़कर पूरी दुनिया र्इश्वर को मान रही है, लेकिन किसी की भी विचारधारा किसी र्इश्वरीय ग्रन्थ पर नही है। इसलिए किसी का र्इश्वर:-
1- ऐसा हैं जिसकों छह दिनों में दुनिया पैदा करके सातवें दिन आराम करने की जरूरत पेश आ गर्इ।
2- किसी का र्इश्वर रब्बुल आलमीन (संसार का पालनहार) नही है, बल्कि रब्बुल र्इसरार्इल (र्इसरार्इल का पालनहार) हैं, जिसका एक नस्ल के लोगो से ऐसा विशेष रिश्ता हैं, जो दूसरे इन्सानों से नही हैं।
3-किसी का र्इश्वर हजरत याकूब से कुश्ती लड़ता है, लेकिन उसको गिरा नही सका।
4-किसी का र्इश्वर औजेर नामी एक बेटा भी रखता हैं।
5- किसी का र्इश्वर यीशु मसीह नामी एक इकलौते बेटे का बाप हैं और वह दूसरो के गुनाहों का कफ्फारा बनाने के लिए बपने बेटे को सलीब पर चढ़ा देता हैं।
6- किसी का र्इश्वर बीवी-बच्चे भी रखता हैं, मगर बेचारे के पास बेटियां ही बेटियां पैदा होती हैं।
7-किसी का र्इश्वर इन्सानी रूप धारण करता हैं। जमीन पर इन्सानी जिस्म मे रहकर इन्सानों के काम करता हैं।
8-किसी का र्इश्वर केवल, ‘‘ वाजेबुल वजूद’’ या ‘‘इल्लतुल इलल’’ (First cause) हैं। कायनात के निजाम को एक मरतबा हरकत देकर अलग जा बैठा और उसके बाद कायनात लगे-बंधे कानून के मुताबिक खुद चल रही है। इनिसान का उससे और उसका इन्सान से कोर्इ सम्बन्ध नही है।
इस प्रकार जो लोग र्इश्वर को मानते भी हैं वे खुदा को यह नही मानते कि ब्रहम्माण्ड के निजाम को केवल बनाया ही नही हैं बल्कि हर वक्त वही उसको चला भी रहा हैं। जिसकी जात, सिफात, इख्तियारात और इस्तेहकाके माबूदियत मे कोर्इ इसका साझी नही हैं। जो इस बात से उपर हैं कि कोर्इ उसकी औलाद हो या किसी को अपना बेटा बनाए या किसी को अपना बाप बनाए। वह तो अजन्मा हैं। किसी कौम और नस्ल से उसका खास रिश्ता नही है।
आज दुनिया के पास कुरआन मजीद के अतिरिक्त कोर्इ ऐसा ग्रन्थ नही हैं जो र्इश्वरीय भी हो ओर पूर्णत: सुरक्षित भी। आज दुनिया खुद ही कल्पना द्वारा एक र्इश्वर बनाती हैं और खुद ही उसके गुण तय करती हैं। अब यह बात पूर्ण रूप से सिद्ध हो चुकी है कि कुरआन मजीद अन्तिम र्इशग्रन्थ हैं और पूर्णत: सुरक्षित भी हैं। इसलिए र्इश्वर के बारे मे जो कुछ यह किताब कहती हैं, वही सही हैं।
अन्तिम र्इशग्रन्थ से पहले जितने भी ग्रन्थ र्इश्वर की तरफ से आए थे वे बिगाड़ का शिकार होकर चुके थें इसलिए किसी के पास भी र्इश्वर के बारे मे सही जानकारी का कोर्इ साधन न था। हर एक ने अपनी कल्पना से एक र्इश्वर बनाया और स्वंय ही उसके बारे मे जानकारी दे दी। इसी लिए इन लोगो के यहां र्इश्वर के बारे मे प्रस्तुत की हुर्इ जानकारी एक-दूसरे से मेल नही खाती। अन्तिम र्इश-ग्रन्थ के आधार पर जो र्इश्वर का परिचय दिया जाए तो लोग यही समझेंगे कि यह भी लेखक के दिमाग की पैदावार हैं। इसलिए अब र्इश्वर का जो परिचय इस लेख मे दिया जा रहा है, उसके साथ अन्तिम र्इशग्रन्थ (कुरआन) की आयतें भी लिख दी जाएगी, ताकि लोगो के दिमाग में कोर्इ गलत धारणा पैदा न होने पाए। परन्तु छोटी-से लेख मे पूरी-पूरी आयतों का लिखना असम्भव हैं।इसलिए यहां केवल आयत नम्बर दे दिया जाएगा, ताकि लोग उसको कुरआन मजीद से तुलना करके देख लें।
•अन्तिम र्इशग्रन्थ कुरआन मजीद मे र्इश्वर का क्या परिचय दिया गया हैं, उसको हम संक्षेप मे प्रस्तुत करेंगे और कुरआन मजीद की जिन आयतों के आधार पर जो बात कही गर्इ हैं उनका आयत नम्बर भी कर्ज किया गया हैं।
इस्लाम की बुनियाद जिन धारणाओं पर हैं, उनमें सबसे प्रथम एवं मुख्य धारणा एक र्इश्वर पर र्इमान है। केवल इस बात पर नही कि र्इश्वर मौजूद है और केवल इस बात पर भी नही कि वह एक है, बल्कि इस पर कि वही अकेला इस ब्रहम्माण्ड का खालिक, मालिक, हाकिम और मुदब्बिर है।
सूरा अल-आराफ: आयत-5
अल-बकरा : 101
अल-फुरकान : 2
•उसी के कायम रखने से यह ब्रहम्माण्ड कायम है। उसी के चलाने से यह चल रहा है। उसकी हर चीज को अपने कयाम और बका के लिए जिस शक्ति की आवश्यकता है उसका मुहैया करने वाला वही हैं।
सूरा फातिर : आयत 3, 41
अल-जासिया : आयत 58
अल-अनआम : आयत 164
•हाकमियत (Sovereignty) की तमाम सिफात केवल उसी में पार्इ जाती हैं और उनमें जर्रा भर भी उसका कोर्इ शरीक नही है।
सूरा अल-अनआम : 18, 57
अल-कहफ : 26-27
अल-हदीद : 5
अल-हश्र : 23
अल-मुल्क : 1
यासीन0 : 83
अल-फत्ह : 11
सुर:यूनुस : 107
अल-जिन्न : 22
अल-मोमिनून :88
अल-बुरूज 16
अल-माइदा : 1
अर-रअद : 41
अल-अम्बिया : 23
अत-तीन : 8
आले इमरान : 26, 83, 154
अल-आराफ : 128
•वह समस्त ब्रहम्माण्ड को और उसकी एक-एक वस्तु को वह देख रहा हैं। ब्रहम्माण्ड और उसकी हर चीज को वह जानता हैं। न सिर्फ उसके वर्तमान को बल्कि भूत और भविष्य को भी। समस्त इल्मे गैब (अप्रत्यक्ष ज्ञान) उसके अतिरिक्त किसी को प्राप्त नही हैं।
सूरा अल-मुल्क : 13, 14, 19
अल-कहफ : 26
सुर:काफ: 16
अल-हदीद : 4
अल-नम्ल : 65
सुर:सबा : 2-3
अल-अनआम : 59
•वह हमेशा से हैं और हमेशा रहेगा। उसके अतिरिक्त सब मरने वाले हैं और अपनी जात से खुद जिन्दा और बाकी केवल वही हैं।
सूरा अल-हदीद : 3
अल-कसस : 88
अर-रहमान : 27
अल-बकरा : 255
अल-मोमिन : 65
•वह न किसी की औलाद हैं और न कोर्इ उसकी औलाद है। उसकी जात के अतिरिक्त दुनिया में जो भी हैं, वह उसकी मखलूक है। दुनिया में किसी की भी हैसियत नही हैं कि उसको किसी माने मे भी रब्बे कायनात (Lord of the universe) का हमजिन्स या उसके बेटा या बेटी कहा जा सके।
सूरा अल-बकरा : 116, 117
अल-अनआम : 102
अल-मोमिन : 91
अल-कहफ: 4-5
सुर:मरयम : 35,88-93
•वही मानव का वास्तविक माबूद है। किसी को इबादत मे उसके साथ शरीक करना सबसे बड़ा पाप और सबसे बड़ी बेवफार्इ हैं। वही समस्त मानवों की दुआएं सुनने वाला हैं और कबूल करने या न करने का अधिकार वही रखता है। उससे दुआ न मांगना बेजा गुरूर हैं। उसके अतिरिक्त किसी और से दुआ मांगना जहालत हैं और उसके साथ दूसरों से दुआ मॉगना खुदार्इ मे गैर खुदा को खुदा के साथ शरीक ठहराना हैं।
सूरा अल-कसस :88
अज-जुमर : 3,64,5,6
सुर:लुकमान : 13
सुर:सबा :22
सुर:सुवादص : 65
अल-मोमिन :60
•इस्लामी दृष्टिकोण से र्इश्वर की हाकमियत केवल प्रकृति के अनुरूप ही नही हैं, बल्कि सियासी और कानूनी भी हैं और इस हाकमियत मे भी कोर्इ उसका शरीक नही है। उसकी जमीन पर, उसके पैदा किए बन्दो पर उसके अतिरिक्त किसी को हुक्म चलाने का अधिकार नही हैं, चाहे वह कोर्इ बादशाह हो या बादशाही खानदान हो, शासक वर्ग हो या कोर्इ ऐसा प्रजातंत्र हो जो जनता की सत्ता (Soverengity of people) का कायल हो। उसके मुकाबले मे जो स्वतंत्र बनता हो वह भी बागी है, जो उसको छोड़कर किसी दूसरे की इताअत करता हो वह भी बागी हैं और ऐसा ही बागी वह व्यक्ति या संस्था हैं जो अपने राजनीतिक और कानूनी अधिकार को सुरक्षित करके खुदा की सीमा व अधिकार (Jurisdiction) को व्यक्तिगत कानून ( Personal law) या धार्मिक आदेश या उपदेश तक सीमित करता हैं। वास्तव मे अपनी जमीन पर पैदा किए हुए इन्सानों के लिए शरीअत देने वाला (Law give) उसके सिवा न कोर्इ हैं, न हो सकता हैं और न किसी को यह हक पहुचना हैं कि इकतिदार (Supreme Authority) को चैलेंज करें।
सूरा अल-फुरकान : 42
अत-तौबा : 31
अश-शुअरा :21
अल-मोमिनून :116
अन-नास :1,3
सुर:यूसुफ : 40
अल-आराफ :3
अल-माइदा : 38,40,44,45,47,50,115
अल-बकरा :178,180,182, 229, 232
अन-निसा : 11,60
अल-जासिया : 18
अन-नहल :116
अन-नूर : 2
आले-इमरान : 64
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