हर व्यक्ति का सबसे पवित्र रिश्ता मॉं से होता हैं। अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) की एक हदीस के अनुसार पुरूषों पर स्त्रियों को तिगुनी श्रेष्ठता प्राप्त हैं। एक सहाबी रजि• ने आप सल्ल0 से पूछा कि मै सबसे अधिक किसके साथ भलार्इ करू?
आपने फरमाया, ‘मॉ के साथ,
उसने पूछा, ‘फिर किसके साथ?’ आपने फरमाया, ‘मॉ के साथ।’
उसने पूछा, फिर किसके साथ? आपने फरमाया, ‘मॉं के साथ’
उसने चौथी बार पूछा, ‘उसके बाद? आपने फरमाया, ‘ बाप के साथ।’ (तिरमिज़ी)
हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) की इस हदीस से पता चलता है कि स्त्री को पुरूष पर तिगुनी श्रेष्ठता प्राप्त हैं। आपकी एक हदीस हैं, ‘‘मॉं के कदमों तले जन्नत हैं।’’
पुरूष का सबसे निकट सम्बन्ध अपनी पत्नी से होता है। पत्नी पति की जीवन साथी होती हैं इसलिए वह आदर की पात्र होती हैं। लेकिन पुरूषो ने उसको केवल कामवासना का साधन बना लिया। वह आदर भी करता था तो सम्मान भाव से नही, बल्कि भोग-विलास के भाव से।
संसार के हर देश में, सभ्य-असभ्य हर जाति में बहु विवाह का चलन था। पुरूष जितनी स्त्रियॉ चाहता रख लेता, परन्तु न सबका आदर कर सकता, न सबको सुखी रख सकता। अरब के निवासी दासियों के होते हुए भी आठ-आठ पत्नियां रख लेते, और जिसको जब चाहते तलाक दे देते, झूठा दोष लगाकर महर (विवाह का सुनिश्चित स्त्री धन) भी न देते, मरने वाले पति और पिता के धन एवं जायदाद मे औरत का कोर्इ हिस्सा न था। भारत मे भी बहुविवाह का चलन था। अल्लाह ने पवित्र कुरआन मे बहु विवाह की सीमा निश्चित कर दी।चार पत्नियां तक की तो अनुमति दे दी, परन्तु इन कड़ी शर्तो के साथ कि चारो के साथ समान व्यवहार किया जाए। जो इस आदेश का पूरा-पूरा पालन न कर सके, उसको एक से अधिक पत्नी रखने का अधिकार नही। अल्लाह तआला ने मरने वाले पति और पिता के धन-जायदाद मे स्त्रियों का हिस्सा भी निश्चित कर दिया जो कुरआन मे सविस्तार उल्लिखित हैं और इस्लामी कानून का अनिवार्य अंश हैं। इस्लाम के पैगम्बर हजरत मुहम्मद (सल्ल0) ने अपने उपदेश में पत्नियों के साथ अच्छा व्यवहार करने की शिक्षा दी हैं। आपने फरमाया:-
‘‘तुममें अच्छा व्यक्ति वह हैं जो अपनी पत्नी के सम्बन्ध में अच्छा हैं’’
अरब के लोग बेटियों की हत्या कर देते थे। भारत में भी यही प्रथा थी। कुरआन ने लोगो को इस दुष्कर्म से मना किया। आप सल्ल0 ने बेटियों से स्नेह की शिक्षा ही नही दी, बल्कि स्नेह के साथ सम्मान का आदर्श भी उपस्थित किया। बेटियों को पाल-पोसकर विवाह कर दैने का फल जन्नत मे अपने निकट स्थान बताया। स्त्रियों को बहुत सम्मानित किया। माता की सेवा का फल भी जन्नत और बेटी से स्नेह और लालन-पालन का फल भी जन्नत बताया गया। बहन को भी बेटी के बराबर ठहराया गया। पत्नी को दाम्पत्य जीवन, घराने व समाज मे आदरणीय, पवित्र, सुखमय व सुरक्षित स्थान प्रदान किया गया।
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