Friday, 29 January 2016

अपनी औलाद को इल्म के ज़ेवर से आरास्ता कीजिए! ये आपका फर्ज़ है-औलाद का हक़ है!

السَّلامُ عَلَيْكُمْ وَرَحْمَةُ اللهِ وَبَرَكْاتُهُ
इल्म हासिल करना उम्मते मुस्लिमा के फराइज में शामिल है!
हदीस शरीफ और हुसूले इल्मः-
नबी करीम (सल0) ने हदीस में इल्म हासिल करने पर जोर दिया है। आप ने जब मस्जिदे नबवी की तामीर की तो उसके साथ तालीम के लिए चबूतरा तामीर फरमाया जिसपर बैठकर सहाबा हजरात इल्मे दीन सीखते थे और जिंदगी गुजारने के लिए आप से तहजीब और तमद्दुन की बात मालूम करते थे। हालांकि मस्जिदे नबवी की तामीर का दौर आप और आपके सहाबा पर मआशी तंगी का जमाना था, पेट पर पत्थर बांधे हुए होते थे फिर भी उस वक्त मस्जिद और चबूतरा बनाते अल्लाह के नबी ने मुसलमानों को यह तालीम दे दी है कि मुसलमान भूका प्यासा रह सकता है मगर जैसे नमाज से दूर नहीं हो सकता उसी तरह इल्म हासिल करने से भी दूर नहीं रह सकता, जैसे नमाज फर्ज है उसी तरह इल्म हासिल करना भी फर्ज है। जैसा कि फरमाया गया है कि अगर इल्म के लिए तुम्हें विदेश भी जाना पड़े और दूर जाना पड़े तो हर हालत में इल्म हासिल करो। नबी करीम (सल0) ने फरमाया तुममें बेहतरीन शख्स वह है जो कुरआन पाक सीखे और सिखाए।
                     एक मरतबा हजरत इब्ने अब्बास (रजि0) ने बचपन में आपके लिए तहज्जुद के वक्त वजू का पानी रखा। नबी करीम (सल0) तशरीफ लाए और पूछा कि यह पानी किसने रखा है। हजरत इब्ने अब्बास (रजि0) ने फरमाया मैंने। नबी करीम (सल0)खुश हुए और उन्हें दुआ दी। ऐ अल्लाह इसे कुरआन का इल्म अता फरमा। (बुखारी)

हजरत इब्ने अब्बास (रजि0) से रिवायत है कि नबी करीम (सल0) ने इरशाद फरमाया कि लोगों को तालीम दो और उनके साथ आसानी का बर्ताव करो और सख्ती का बरताव न करो। (मसनद अहमद)

हजरत सफवान (रजि0) इरशाद फरमाते हैं कि मैं नबी करीम (सल0) की खिदमत में हाजिर हुआ आप उस वक्त सुर्ख धारियों वाली चादर पर टेक लगाए तशरीफ फरमां थे। मैंने अर्ज किया या नबी करीम (सल0)! मैं इल्म हासिल करने आया हूं। आप (सल0) ने इरशाद फरमाया तालिबे इल्म को खुशआमदीद हो। (तबरानी) तबरानी की यह रिवायात तो तालीम व ताल्लुम के सिलसिले में बड़ी वाजेह हिदायात मुसलमानों को देती हैं।

हजरत अबू बक्र (रजि0) फरमाते हैं कि मैंने रसूलुल्लाह (सल0) को इरशाद फरमाते हुए सुना कि तुम आलिम बनो या तालिब इल्म बनों या इल्म को तवज्जो से सुनने वाले बनों या इल्म व इल्मवालों से मोहब्बत करने वाले बनों। इन चार के अलावा पांचवी किस्म मत बनों वर्ना हलाक हो जाओगे। यानी नबी करीम (सल0) फरमा रहे हैं कि जिंदगी में किसी तरह इल्म हासिल करने से तुम्हारा ताल्लुक होना चाहिए। इल्म से दूरी या इल्मवालों से बुग्ज और पढ़ने लिखने से अलाहदगी इंसान को हलाकत तक पहुंचा देती है इसीलिए बेहकी की रिवायत में आप (सल0) ने फरमाया इल्म सीखो और लोगों को सिखाओ। रसूल (सल0) की बेशुमार हदीसों में से चंद रिवायतें नमूने के तौर पर पेश की गई हैं।

हुसूले इल्म और सहाबा:-
सहाबा (रजि0) चूंकि बड़ी उम्रों के बाद ईमान कुबूल किए इसलिए इल्म हासिल करने के लिए हमेशा कोशां रहते थे। हजरत अबू हुरैरा (रजि0) तो हमेशा आप (सल0) की खिदमत में इल्म हासिल करते रहते थे। असहाबा-ए-सूफ्फा में आपका शुमार था। हजरत इब्ने अब्बास (रजि0) जो नबी करीम (सल0) के रिश्ते में भाई थे बचपन में इल्म हासिल करने के लिए दूर का सफर करते थे और जिससे इल्म हासिल करना होता था उनके दरवाजे पर घंटो इंतजार करते थे कि जब बाहर तशरीफ लाएं तो हदीसें मालूम करें और सीखे।
                   हजरत अबू बक्र सिद्दीक (रजि0) फरमाते हैं इल्म पैगम्बरों की मीरास व माल कुफ्फार फिरऔन और कारून की मिरास है। हजरत उमर (रजि0) का एक दूसरे सहाबी से समझौता था । दोनों साथ-साथ तिजारत करते थे। एक दिन हजरत उमर (रजि0) तिजारत संभालते और दूसरे साहब आप (सल0) के खिदमत में इल्म हासिल करते। शाम को जो सीखा वह पूरा सिखाते थे और तिजारत में मुनाफे पर आधा-आधा कर लेते थे। इस तरह से तिजारत भी चलती थीं और हुसूले इल्म भी होता था।

हजरत उस्मान गनी (रजि0) ने फरमाया कि इल्म इतनी कीमती चीज है कि बगैर अमल के भी फायदा देता है। हजरत अली (रजि0) किसी ने पूछा कि इल्म बेहतर है या दौलत। आप ने फरमाया इल्म दौलत से बेहतर है। इसलिए कि दौलत कारून व फिरऔन को मिलती है और इल्म पैगम्बरों को मिलता है।
* इंसान को दौलत की हिफाजत करनी पड़ती है मगर इल्म इंसान की हिफाजत करता है।
* दौलतवालों के दुश्मन बहुत होते हैं मगर इल्म वाले आदमी के दोस्त ज्यादा होते हैं।
* दौलतमंद बखील होता है और इल्मवाला सखी होता है।
* दौलत खर्च करने से घटती है और इल्म खर्च करने से बढ़ता है।
* दौलत को चोर चुरा सकते हैं इल्म को कोई नहीं चुरासकता।
* दौलत गुरूर सिखाती है जबकि इल्म हिल्म सिखाता है।
* दौलत की हद होती है और इल्म की कोई हद नहीं होती।
* दौलत का कयामत के दिन हिसाब देना होगा जबकि इल्म का कोई हिसाब नहीं।
* दौलत से दिल में अंधेरा होता है और इल्म से दिल को रौशनी मिलती है।

इल्म की तकसीम नहीं है:-
यह समझना जरूरी है कि इस्लाम ने दीनी और दुनियावी इल्म की कोई तकसीम नहीं की है। हर किस्म का इल्म और हुनर और हर फन मुसलमानों को हासिल करना चाहिए। जिससे खुदा की मआरिफत हासिल हो। आदमी को अच्छे काम करने में मदद मिले जिससे लोगों के हुकूक का पता चले। इस्लामी तहजीब और तमद्दुन मालूम हो और हर वह इल्म हासिल करे जिससे हलाल रोजी हासिल करने में मदद मिले। मुसलमान किसी भी तालीम के शोबे में पीछे रहे यह अल्लाह के नबी को पसंद नहीं है। आप ने मुख्तलिफ पेशे सीखने का हुक्म दिया और हौसला अफजाई फरमाई। मुख्तलिफ जबानों के सीखने पर जोर दिया।

एक सहाबी ने आप (सल0) से मुसाफहा फरमाया आप ने महसूस किया कि उनके हाथ बेहद खुरदुरे और सख्त हैं। आपने पूछा कि तुम्हारे हाथ इतने सख्त क्यों हैं। सहाबी (रजि0) ने जबाव दिया या नबी करीम (सल0) मैं रिज्क हासिल करने के लिए पत्थर फोड़ता हूं। आप (सल0) ने उन सहाबी के हाथों को बोसा दिया और फरमाया कि मुबारक हैं वह हाथ जो हलाल रोजी हासिल करने के लिए इतने सख्त हो गए हैं इसलिए कि हलाल कमाना और खाना फर्ज नमाज के बाद दूसरा फर्ज है।
जरूरी वजाहत:-
अलबत्ता इतनी बात जरूर है कि सबसे अफजल वह इल्म है जिसे आप लाजमी तौर पर हासिल करेंगे। वह कुरआन पाक और हदीस और दीन का इल्म है। इसके बगैर कोई मुसलमान हकीकी मुसलमान नहीं बन सकता। इसलिए माडर्न तालीम हासिल करने से पहले अपने बच्चों को कुरआन पढ़ना सिखाएं, दीन की जरूरी और अहम बातें सिखाएं रहन सहन के आदाब, बड़ो के साथ अदब व एहतराम का सुलूक, छोटो से प्यार से पेश आना, जरूरी तहजीब और तर्बियत देना जरूरी है। इसके बाद मुसलमान दुनियावी उलूम शौक से हासिल करें। लेकिन दीन व ईमान के दायरे में रह कर हासिल करें।

तालीम-ए-निस्वां:-
यही हिदायत हमारी बच्चियों के लिए भी है। औरतों को तालीम से दूर रखना इंतिहाई गलत बात है। एक पढ़ी लिखी मां की गोद से ही पढ़ी लिखी औलाद समाज को मिल सकती है। मां की गोद बच्चे के लिए सबसे पहला स्कूल है। इसलिए उसका पढ़ा लिखा होना बेहद जरूरी है। इसीलिए आप (सल0) ने जहां मर्दों को खिताब फरमाते थे वह औरते भी सुना करती थीं। इसके बावजूद अल्लाह के रसूल (सल0) खुसूसियत के साथ अलग मजलिस में सिर्फ उनको खिताब फरमाया करते थे। हजरत आयशा (रजि0) इस उम्मत की बड़ी आलिमा औरतों में शुमार की जाती हैं। कभी कभार सहाबा नबी करीम (सल0) के विसाल के बाद उनसे अपने मुश्किलात हल फरमाया करते थे। किसी दानिश्मंद का कौल है कि एक औरत को तालीम दे देना एक यूनिवर्सिटी खोल देने के बराबर है।
           लिहाजा इसके लिए तमाम मुसलमानों से यह अर्ज है कि अपनी औलाद को तालीम दिलाएं। हर हाल में तालीम दिलाएं। यह आप का फरीजा है। औलाद का हक है कि उनकी अच्छी तालीम व तर्बियत का इंतजाम किया जाए।

पैगम्बरे इस्लाम ने आज से चौदह सौ साल पहले वाजेह फरमा दिया कि मां-बाप की तरफ से औलाद को सबसे अजीम तोहफा उनकी अच्छी तालीम और तर्बियत है। यही उनके लिए दीन और दुनिया दोनों एतबार से अच्छी नेमत है। बाकी सारी चीजें फानी हैंऔर सानवी दर्जा रखती हैं। इसलिए अपनी औलाद को पढ़ाइए और मेहनत करके पढ़ाइए। एक वक्त भूके रहकर पढ़ाना पडे तो भूके रहकर पढ़ाइए। हर तकलीफ, मशक्कत व जद्दोजेहद को बर्दाश्त करके अपनी औलाद को इल्म के जेवर से आरास्ता कीजिए ताकि अल्लाह के पास जवाबदेही आसान हो।
            अपनी औलाद से कमाना उनकी तालीम हासिल करने के जमाने में कमाई को भेजना इस्लाम की नजर में अजीम जुर्म है। चंद सिक्को और रूपयों की खातिर अपनी औलाद का सुनहरा मुस्तकबिल बर्बाद न करें।

अल्लाह पाक हम सबको अमल की तौफीक अता फरमाएं-आमीन।

अल्लाह पाक इस उम्मत के हर मर्द और औरत को अपनी मंशा के मुताबिक मोहब्बत और हिकमत के साथ भलाई को फैलाने वाला और बुराई से हटाकर नेकियों की तरफ लाने वाला बना दे-आमीन।

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