अहकाम किसे कहते हैं:-
“अहकाम” लफ़्ज़ “हुक्म” लफ़्ज़ का जमा है, यानि अहकाम के मायने वह सारे अहकाम है जो अल्लाह ने अपने कलाम के ज़रिये इन्सानो को दिये हैं, और जब हम अल्लाह का कलाम कहते हैं तो उसका मतलब सिर्फ कुरान नहीं होता बल्कि उसके मायने कुरान और सुन्नत के होते हैं, और ज़ाहिर है अल्लाह का कलाम हमारे अमल के मुताल्लिक आता है, अमल में हमारा कौल, हमारा फ़ेल सब आता है , यानि क्या हमे करना है क्या हमे नहीं करना है। अहकाम हर उस आदमी के लिए होते हैं जो उसका मुकल्लीफ़ होता है यानि अहकाम की ज़िम्मेदारी हर उस इंसान पर आयद होती है जो उसके काबिल है। असल में इस्लाम एक दीन है जो इन्सानो के सारे गोशे के लिए अहकामात देता है , कभी ऐसा नहीं होता कि किसी मामले के लिए दीन खामोश हो , यानि उस मामले में दीन कोई अहकाम न देता हो । इसी बात को कुरान कहता है कि-
“हमने इस किताब में कुछ भी नहीं छोड़ा है“( सूरह अल्अनआम आयत 38),
और यह भी सोचना जायज़ नहीं कि दीन ए इस्लाम में हर चीज़ का हल नहीं है या कोई एक दुक्का मामले ऐसे है जिसमे दीन ने हमे तन्हा छोड़ दिया है , ऐसा मुमकिन नहीं होता क्योंकि अल्लाह खुद कुरान में फरमाता है-
“हमने तुम पर एक किताब नाज़िल की है जिसमे हर चीज़ का हल है “ (सूरह नहल आयत 89)
इसी लिए हमारे लिए ज़रूरी है कि हम यह समझे कि अहकाम कितनी तरह के होते हैं और हमारे अमल जो हम जाने अंजाने में करते हैं वो किस अहकाम के तहत आते हैं ताकि हम अपने अमल को शरीयत के मुताबिक कर सके ,हमारे लिए यह जानना इसलिए भी ज़रूरी है क्योंकि सहीह बुखारी में एक हदीस दर्ज है जिसमे कहा गया है-
“ जो अमल दीन से नहीं लिया गया वो रद्द कर दिया जाएगा “।
इसीलिए यह ज़रूरी है कि हम यह जाने कि जो अमल हम कर रहे हैं उसकी दीन में क्या हैसियत है? दीन के बताए हुए तरीके पर हैं भी या नहीं? दीन का इल्म लेना इसीलिए हम पर फर्ज़ है ।
अहकाम कितने तरह के होते हैं-
इस्लाम में अल्लाह ने हमको, हमारे अमल के लिए अहकाम दिये हैं , कुछ हुक्म को ज़ोर देकर कहा कुछ को करने से मना किया ,कुछ अहकाम करने कि इजाज़त दी , इसी बात को समझने के लिए हम यह समझे असल में दीन में अहकाम कितने तरह के होते हैं । इस्लाम में अहकाम पाँच तरह के होते हैं :-
1-फर्ज़ या वाजिब अहकाम –
फर्ज़ या वाजिब का लफ़्ज़ी मायने होते है “लाज़मी” यानि इसे हम अगर शरई नज़र से देखे तो वो अहकाम जो अल्लाह ने हम पर लाज़िम किए हैं मिसाल के तौर पर पाँच वक़्त कि नमाज़ हम पर लाज़िम है कि हम उसे अदा करें। वाजिब या लाज़िमी अहकाम उन अहकाम को भी कहते हैं जिन अहकामों को करने पर अल्लाह ने सवाब रखा है और उन अहकामों को तर्क करने पर गुनाह रखा है । अब अगर कोई फर्ज़ अहकाम है तो उसे हम अगर अदा करेंगे तो उस पर हमको उसका सवाब मिलेगा और नहीं करेंगे तो गुनाह के हिस्सेदार होंगे।
2-मंदूब -
मंदूब के लफ़्ज़ी मायने होते हैं कोई चीज़ या कोई किसी चीज़ को करने को कहे या करने कि सलाह दे , लेकिन शरई नज़र में मंदूब उन अहकामों को कहते हैं जो हमको अल्लाह के कलाम ने करने के लिए कहा तो है लेकिन एक सलाह और सुझाव कि हैसियत से कहा है , उसको अल्लाह ने हम पर फर्ज़ करार नहीं किया है यानि अगर हम उन अहकामों को अदा करते हैं तो उस पर हमको सवाब और अज्र मिलेगा लेकिन अगर किसी वजह से हम उन अहकामों को अदा नहीं कर पाते तो उस पर हमको कोई गुनाह नहीं मिलता,मिसाल के तौर पर मुहर्रम के अशुरा के दिन रोज़ा रखना हमारे लिए मंदूब है लेकिन फर्ज़ नहीं है । मंदूब अहकाम के दूसरे नाम सुन्नत भी हैं ।
3-हराम –
हराम के लफ़ज़ी मायने है जिसको मना किया गया है , शरई नज़र में वो अमल जिनको अल्लाह ने मना फरमा दिया है उसे हम हराम अमल कहते हैं और उन अमल पर आए हुए अहकाम को हम हराम अहकाम कहते हैं , जिन अमल को अल्लाह ने मना फरमा दिया है अब अगर उसे कोई करेगा तो उसे गुनाह मिलेगा और अगर उस हम नहीं करेंगे तो सवाब मिलेगा जैसे कि शराम का पीना हराम है अब शराब पीने पर उसे गुनाह मिलेगा और अगर शराब से बच जाते हैं तो उसके लिए हम सवाब के हामिल होंगे ।
4-मकरूह -
मकरूह के लफ़ज़ी मायने है जिसको नापसंद किया जाये , यानि जिन अमल को अल्लाह ने अपने कलाम के ज़रिये नापसंद फरमा दिया है उन अमल को हम मकरूह अमल कहते हैं, लेकिन उन अमल के किसी तरह हो जाने पर अल्लाह ने कोई सज़ा या गुनाह नहीं रखा है, हाँ अगर उन अमल को हम करने से बच जाते हैं तो उस पर हम सवाब के हामिल हो जाते हैं , मिसाल के तौर पर लेने और देने में बायेँ हाथ का इस्तेअमाल करना ।
5-मुबाह-
मुबाह अहकाम वो अहकाम हैं जिन अहकाम को करने कि इजाज़त दी है ऐसे अमल जिनको करने या ना करने में सवाब या गुनाह का कोई किरदार नहीं है । मिसाल के तौर पर हम अरहर कि दाल खाएं या मसूर कि दाल खाएं , किसी एक को चुनने में कोई सवाब या गुनाह का कोई किरदार नहीं है ।
हमारे सारे अमल इन्ही पांचों अहकाम के तहत ही आते हैं , लेकिन हमारे लिए यह ज़रूरी है कि यह हम पता करें कि कौन से अमल किस अहकाम के तहत आते हैं ताकि हम उसकी अहमियत समझते हुए उसी तरह अदा कर पाएँ!
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