Saturday, 30 January 2016

इल्म की अहमियत अहादीस की रोशनी में!

इल्म की अहमियत और फ़ज़ीलत के ताल्लुक से यू तो अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने क़ुरआन में कई आयतें नाज़िल की है. कुछ का तज़किरा हम इस पोस्ट में करते हैं:-

👉इल्म में बरकत के लिए बेहतरीन दुआ -
अल-क़ुरान: “व कुल रब्बी ज़िदनी इलमन” - [सूरह ताहा (२०) आयत ११४]
(तर्जुमा: ऐ नबी दुआ कीजिये अपने रब से की ऐ अल्लाह मेरे इल्म में इज़ाफ़ा कर!)
                            ये हुक्मी आयत है और अंदाज़ा लगाइये की नबी-ए-करम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को हुक्म आ रहा है की आप अपने रब से इल्म की बरकत के खातिर दुआ किजिये… जब उस ज़ात को हुक्म आ रहा है जिसे अल्लाह अपने ग़ैब का इल्म अता करता है तो बा दर्जे उलूला हमारे से यह आयात ज़्यादा ख़िताब कर रही है की तुम तो ज़्यादा हासिल करो ,…
तो गोया अल्लाह की ज़ात सरचश्मा है इल्म का! अल्लाह की ज़ात इल्म का ज़रिया है…
लिहाज़ा अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने अपने बन्दों को दुआ सिखलाई की: ‘मांगो अपने रब से की वो तुम्हारे इल्म में इज़ाफ़ा कर दे.…’

👉क्या अहले इल्म और जाहिल बराबर हो सकते हैं ? –
इस ताल्लुक से अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त क़ुरान में एक जगह फ़रमाता है:
अल-क़ुरान: “हल यस्तविल लज़ीना या’लमूना वल्लज़ीना ला या’लमून” - [सूरह ज़ुमर (३९) आयात ९]
(तर्जुमा: ऐ नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ! वो लोग जो इल्म रखते है और जो लोग इल्म नहीं रखते क्या दोनों बराबर हो सकते हैं? नहीं!
                      लिहाज़ा इल्मवालो के दर्जात है अल्लाह के पास! तो इल्म हासिल करने से इंसान को फ़ज़ीलत हासिल होती है उसके दर्जात बुलंद होते है. और क्यों ना हो? दुनिया में हम एक दूसरे की इज़्ज़त क्यों करते हैं?? चाहे दीनी हलको में हो या दुनियावी ?
# दुनियावी हलको में: टीचर है, प्रिंसिपल है, डॉक्टर है, वकील है
# और दीनी हलको में उस्ताद है, मुफ़्ती है, आलिम है, हाफिज है, क़ारी है
यक़ीनन ये इल्म ही तो है जिसकी बुनियाद पर इंसान को इज़्ज़त और रुतबा मिलता है दुनिया मे …
तो मालूम हुआ की इल्म कोई भी हो वो इज़्ज़त और मर्तबा लाता है.…
और अगर दुनियावी इल्म शरअई (दीनी) इल्म के साथ मिल जाए तो सोने पर सुहागा हो जाता है…

👉इल्म इंसान के दर्जात को बुलंद करता है –
अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त क़ुरान में एक जगह फ़रमाता है:
अल-क़ुरान: ” या रफा अल्लाहु अल-लज़ीना अमानु मिनकुम व अल-लज़ीना उतु अल-इल्मा दरजातिन” - [सूरह (५८) मुजादिला: आयात ११]
(तर्जुमा: अल्लाह यक़ीनन उन लोगों को जो तुम में से ईमान लए और जिन्होंने इल्म हासिल किया उनके दर्जात बुलंद करके रहेगा)
                       तो इस आयात में भी पता चला की जो लोग ईमान लाये और फिर इल्म हासिल किया यह दोनों चीज़े वजह बनती हैं इंसान के दर्जात बुलंद होने की,
और वो सब जो ईमान लाये जो रसूलल्लाह के साथ रहकर इल्म-ए-दीन सीखा आज उनका मुक़ाम उनका अहतराम उनकी इज़्ज़त दीगर सहाबा के मुकाबले में मुमताज़ है, ऊँची है और वो ज़्यादा नाम लिए जाते हैं ,…
तो इस आयत से भी पता चला की ये इल्म ही है जो इंसान के दर्जात को बुलंद करता है…

👉इल्म हासिल करना किस पर फ़र्ज़ है? –
महफूम-ए-हदीस है की रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया:
“तालिब उल इल्म फ़रिज़न अत कुल्ली मुस्लिमीन” - (मिसकात सफा २४)
(तर्जुमा: “इल्म का हासिल करना तमाम मुसलमान मर्द और औरत पर फ़र्ज़ है”)
                     गौर करने वाली बात है की यहाँ लफ्ज़ देखिये तलब है! जिसका माना होता है किसी चीज़ को हासिल करने की कोशिश करना गोया आप उसे हासिल न कर पाये फिर चाहे वो आपको ज़िंदगी के 9० वे साल को भी मिल जाए आप उस (इल्म की जुस्तजू ) में ज़रूर लगे रहेंगे ,…
यानी इल्म हासिल करने की कोई हद नहीं है फिर चाहे आप जब भी अपनी ज़िम्मेदारियों से फारिग हो जाओ इल्म के लिए अपने ज़ेहन हमेशा खुले रखें
# इंशा अल्लाह-उल-अज़ीज़ !!!
अल्लाह ताला हमे पढ़ने सुनने से ज़्यादा अमल करने की तौफ़ीक़ दे.…
फिर इंशा अल्लाह हर किस्म का जायज़ इल्म हमे अपने रब की तरफ रुजू करवाएगा …

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