Sunday, 4 October 2015

भ्रष्टाचार और फसादात की असल वजह!

इन्सान को जीवन में यदि कुछ पाना है तो उसके लिए मेहनत अवश्य करनी होती है लेकिन इन्सान की इच्छा हमेशा यही रही है की उसे कम या बिना मेहनत के सबकुछ मिल जाए! अपनी कम मेहनत और अधिक लाभ की इच्छा को पूरी करने के लिए इन्सान शार्टकट के रास्ते तलाश करने लगता है! कभी छात्र और छात्राएं परीक्षा में नक़ल के रास्ते तलाशने लगते हैं और कभी अपना काम आसानी से करवाने के लिए लोग दफ्तरों में रिश्वत खोरों की तलाश करने लगते हैं! कभी हम लाटरी ,इनाम जैसे ईमेल और एस एम् एस के शिकार हो जाते हैं! संक्षेप में कहें तो हमारी यह शार्टकट की सोच ही भ्रष्टाचार की जननी है |
                    इसी भ्रष्टाचार को रोकने के लिए धर्म (मजहब) बना है! जिसमे हमें सही और गलत की पहचान बताई गयी, पाप और पुण्य के बारे में बताया! हमें अच्छे संस्कार देने की कोशिश धर्म के द्वारा हमेशा से की जाती रही है |

इन्सान का स्वभाव यह है कि जो काम उसे कष्ट न दे, ऐश ओ आराम का जरिया बने उसकी और भागता है! धर्म के बताए रास्ते में मेहनत है, कष्ट है इसी कारण हमें धर्म तो पसंद है लेकिन धर्म के बताए रास्ते पसंद नहीं आते! हम मन्दिरों में जाकर, प्रसाद और चढ़ावे की रिश्वत देने की बात करते हैं, मस्जिदों में जाते हैं! बिना मेहनत बहुत कुछ पाने की प्रार्थना-दुआ करना तो पसंद करते हैं लेकिन उसी अल्लाह-ईश्वर के बताये रास्ते पे चलना पसंद नहीं करते |

यही कारण है की हम दोस्तों के बीच बैठकर ,ईमानदारी, सत्यवचन, संस्कारों की बात करके ईश्वर के अवतारों, पैगम्बरों के किस्से ब्यान कर के खुद को बड़ा धार्मिक तो साबित करते हैं लेकिन उन बातों की अहमियत हमारे जीवन में कहानियों से अधिक कुछ नहीं होती! इस ब्लॉगजगत (सोशियल साईट्स) की ही बात ले लें ऐसे बहुत से ब्लॉग हैं जो संस्कारों की बातें करते हैं,समाज के हित की बातें करते हैं पढने वाले उनकी तारीफ भी करते हैं लेकिन ऐसे ब्लॉग को पढने में मज़ा नहीं आता! सिर्फ लाईक करके आगे बढ जाते हैं! पूरा लेख पढना भी चाहे तो उबासी और बोरियत महसूस करने लगते हैं!
                     करीबी दोस्तों में बैठते हैं तो कहते हैं भाई बात तो सही कहता है लेकिन मज़ा नहीं आता रोज़ रोज़ वही संस्कार की बातें सुन के! मज़ा तो आता है उन बातों मे जहां किसी की टांग खींची जाए,कुछ गरमा गरम झगडे हो रहे हों या फिर शान और शौकत की बात हो!

हम खुद को धार्मिक साबित करने के लिए अपने धर्म के बताये रास्तों पे चलने की जगह धर्म के नाम पे झगडा करना अधिक पसंद करते हैं! हम सत्यवादी लोगो की बातें भी करते हैं ,त्योहारों और ख़ास जगहों पे उनका आदर-सत्कार भी करते हैं लेकिन अपने बच्चों को पूरा इमानदार और सत्यवादी नहीं बनाना चाहते! होता यही है की जीवन में खुद को धार्मिक मानने वाले इन्सान का भी जब खुद के धर्म के द्वारा दिखाए रास्तों पे चलने का समय आता है तो यह जानते और समझते हुए की इन अवतारों और पैगम्बरों का बताया तरीका ही सही है हम उन रास्तों से अलग हटकर अपने फायदे और आसानी का रास्ता चुन लेते हैं!

इन्सान की यही गलती इस समाज में फैले भ्रष्टाचार और फसादात की जड़ है और इसी गलती के कारण आज का इंसान अपना सुकून और चैन खोता जा रहा है! इन्सान....... इन्सान का दुश्मन बन चुका है!

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