Saturday, 3 October 2015

कुरआन और गैर मुस्लिम!

कुछ संस्थाओं और लोगो ने यह झूठा प्रचार किया हैं और निरन्तर किए जा रहे हैं कि कुरआन गैर-मुस्लिम को सहन नही करता। उन्हे मार डालने और जड़-मूल से खत्म कर देने की शिक्षा देता हैं।
                कुरआन मजीद की शिक्षाएं समाज देश तथा आम इन्सानो, विशेषकर गैर-मुस्लिम के सम्बन्ध में क्या है, संक्षेप में यहां प्रस्तुत की जा रही हैं। इससे यह अंदाजा हो सकेगा कि कुरआन की शिक्षाए मानव समाज के लिए कितनी अधिक कल्याणकारी हैं और आपत्तिकर्ताओं का दुष्प्रचार कितना अन्यापूर्ण दुर्भाग्यपूर्ण और भ्रामक है।

•कुरआन मजीद मे स्पष्ट रूप से कहा गया हैं:-
‘‘जमीन मे बिगाड़ पैदा न करो।’’(कुरआन, 2: 11)

•एक अन्य स्थान पर कुरआन में हैं:-
‘‘जो कुछ अल्लाह ने तुझे दिया हैं उससे आखिरत (परलोक) का घर बनाने का इच्छुक हो और दुनिया मे अपना हिस्सा मत भूल और भलार्इ कर जैसे कि अल्लाह ने तेरे साथ भलार्इ की है! और अल्लाह जमीन मे बिगाड़ व फसाद पैदा करने वालों को पसन्द नही करता।’’  (28 : 77)

•कुरआन मे एक जगह नबी सल्ल0 के द्वारा कहलाया गया:-
‘‘(नबी ने कहा:) ऐ मेरी कौम के लोगो! न्याय के साथ ठीक-ठीक पूरा नापों और तौलों और लोगो को उनकी चीजों मे घाटा मत दो और जमीन मे बिगाड़ व फसाद न फैलाते फिरो।’’ (कुरआन, 11 : 85)

•कुरआन मे एक जगह हैं:-
‘‘ वह आखिरत (परलोक) का घर हैं जिसे हम उन लोगो को देंगे जो जमीन में अपनी बड़ार्इ नही चाहते और न बिगाड़ पैदा करना चाहते हैं। और कामयाबी तो परहेजगारी और अल्लाह का खौफ रखने वाले लोगो के लिए हैं।’’    (कुरआन, 28 : 83)

•कुरआन ने दुश्मनों तक से न्याय और इन्साफ करने का हुक्म दिया है:-
‘‘ऐ र्इमान वालो। अल्लाह के लिए हक पर जमे रहने वाले, न्याय की गवाही देने वाले बनो। किसी कौम की दुश्मनी तुम्हें इस बात पर उद्यत न कर दे कि तुम न्याय का दामन छोड़ दो । तुम्हे चाहिए कि हर दशा में न्याय करों। यही अल्लाह के खौफ और धर्मपरायणता से मेल खाती बात हैं। अल्लाह का खौफ रखों, जो कुछ तुम करते हो निस्संदेह अल्लाह को उसकी खबर हैं।’’ (कुरआन, 5 : 8)

•कुुरआन मे एक जगह अल्लाह ने यह हुक्म दिया:-
‘‘भलार्इ और बुरार्इ बराबर नही हुआ करती। तुम्हें चाहिए कि (बुरार्इ का) जवाब भले तरीकें से दो (इस आचरण के बाद) तुम देखोंगे कि जिससे तुम्हारी दुश्मनी थी वह तुम्हारा आत्मीय मित्र बन गया हैं।’’

•भले कामों में गैर-मुस्लिमों के साथ सहयोग करने के सम्बन्ध मे कुरआन में अल्लाह का हुक्म है:-
‘‘ऐसा बिल्कुल न हो कि किसी गिरोह की दुश्मनी कि उन्होने तुम्हें प्रतिष्ठित मस्जिद (काबा) से रोका था, तुम्हें इस बात पर उभारे कि तुम उनके साथ अत्याचार व अन्याय करने लगो। भलार्इ और र्इशपरायणता के कामों में तुम सहयोग दो। लेकिन पाप और अत्याचारपूर्ण कामों में सहयोग न दो। अल्लाह से डरते रहो, निस्सन्देह अल्लाह (अवज्ञा पर) सजा देने में अत्यन्त कठोर है।’’ (कुरआन 5: 2)

•कुुरआन मजीद मे सारे ही इन्सानों के साथ धर्म और समुदाय का भेद किए बिना न्याय करने, उनके साथ उपकार और सदभाव का व्यवहार करने, जमीन मे बिगाड़ और उपद्रव न फैलाने और सारे ही इन्सानों की जान और माल का आदर करने के इसी प्रकार के आदेश जगह-जगह दिए हैं।
कुरआन मजीद मे हमारे स्रष्टा और परवरदिगार ने यह कल्याणकारी सिद्धान्त भी लोगो को दिया है:-
‘‘जिसने किसी व्यक्ति की किसी के खून का बदला लेने या धरती मे उपद्रव और तबाही फैलाने के सिवा किसी और कारण से हत्या की मानो उसने सारे ही इन्सानों की हत्या कर डाली। और जिसने उसे जीवन प्रदान किया उसने सारे ही इन्सानों को जीवन प्रदान किया।’’

•कुरआन ने सदा के लिए यह नियम बना दिया कि किसी भी इन्सान को चाहे उसका सम्बन्ध किसी भी या समुदाय से हो मृत्युदंड नही दिया जा सकता। हां! सिर्फ दो तरह के लोगो के साथ ऐसा किया जा सकता हैं:
एक हत्यारे को मृत्युदंड दिया जा सकता हैं। दूसरे उस व्यक्ति को मृत्युदंड दिया जा सकता हैं जो समाज या देश की शान्ति और सुरक्षा भंग करने पर तुला हो और उसने धरती मे तबाही मचा रखी हो।
कुरआन की इस आयत मे यह भी स्पष्ट रूप से बता दिया गया हैं कि किसी व्यक्ति की अकारण और अन्यापूर्ण हत्या एक व्यक्ति की हत्या नही, बल्कि वह सम्पूर्ण मानव-जाति की हत्या करने जैसी हैं। इसी प्रकार किसी व्यक्ति के प्राण बचाना सम्पूर्ण मानव-जाति के प्राणों की रक्षा करना है।
कितनी उच्च और कल्याणकारी हैं यह शिक्षा। इस पर तो पूरी मानवता को कुरआन मजीद का आभारी होना चाहिए।

•गैर-मुस्लिम रिश्तेदारों से मेल-जोल और कुरआन:-कुरआन मजीद की इस आयत पर भी कुछ लोग आपत्ति करते है, जिसमें कहा गया है-
‘‘ऐ र्इमान वालो! अपने बापो और भार्इयों को अपना संरक्षक मित्र न बनाओ, अगर वे र्इमान के मुकाबले मे कुफ्र को पसन्द करें।’’ (कुरआन, 9 : 23)

यह आपत्ति भी पृष्ठभूमि और सन्दर्भ का लिहाज न करने और बात को न समझने के कारण की गर्इ हैं। अगर सन्दर्भ पर तनिक भी विचार किया जाए तो यह बात आसानी से समझ मे आ सकती है कि यहां भी परिस्थितियां इस्लाम और उसके दुश्मनों के बीच सख्त संघर्ष की हैं। इस्लाम के दुश्मन मुसलमानों और इस्लाम को जड़-बुनियाद से उखाड़ देने को तत्पर है और गैर-मुस्लिम दुश्मन अपने मुसलमान रिश्तेदारों से मेलजोल करके इस्लाम के विरूद्ध साजिशो की स्कीमें बना रहे हैं। ऐसी गंभीर परिस्थितियों मे जबकि इस्लाम और मुसलमानों का अस्तित्व खतरे मे है, अल्लाह ने मुसलमानों को चौकन्ना और सावधान करते हुए यह आदेश दिया हैं कि  वे अपने उन रिश्तेदारो तक को, जो इस्लाम की दुश्मनी पर तुले हुए हैं, अपना राजदार और संरक्षक न बनाएं और इस तरह दुश्मनों की साजिशों को असफल कर दें। ऐसी गंभीर और आपात परिस्थितियों मे कुरआन का यह निर्देश कितना सही और बुद्धिसंगत है इससे कोर्इ इन्कार नही हर सकता । ऐसी परिस्थितियों मे इसी प्रकार आदेश और निर्देश पूरी दुनिया मे दिए जाते हैं और उन पर किसी को कभी कोर्इ आपत्ति नही होती। स्वंय हमारे देश मे अगर समाज और देश के किसी दुश्मन, किसी अपराधी और आतंकवादी को उसका कोर्इ दोस्त, नातेदार और रिश्तेदार संरक्षक और सहयोगी बनाता हैं या उसे शरण देता है तो उस शरण देने वाले को भी अपराधी ठहराया जाता हैं और उसे अपराध मे मददगार समझा जाता हैं। कुरआन मजीद का यह आदेश बिलकुल इसी प्रकार का आदेश हैं। कुरआन अल्लाह की ओर से सम्पूर्ण मानवजाति के लिए पूरे जीवन का संविधान हैं। शान्ति और सुरक्षा और सुख-चैन की ध्वजावाहक किसी व्यवस्था के लिए इस आदेश का कितना महत्व है इसे वे लोग अच्छी तरह समझ सकते हैं जिनके कंधों पर समाज और देश की सुरक्षा और शान्ति का दात्यित्व होता हैं।

•कुरआन मजीद ने तो स्वयं इस तरह की गलतफहमी और आपत्ति को दूर करते हुए एलान कर दिया हैं कि:-
‘‘अल्लाह तुम्हें केवल उन लोगो से दोस्ती करने से रोकता हैं जिन्होने तुमसे धर्म के सम्बन्ध मे युद्ध किया और तुम्हें तुम्हारे घरो से निकाला और तुम्हारे निकाले जाने में मदद की।’’(कुरआन 60 : 9)

कुरआन की इस हिदायत की मौजूदगी में क्या यह आपत्ति सही हो सकती है
कि वह गैर-मुस्लिम रिश्तेदारों से सम्बन्ध और मेलजोल रखने को मना करता हैं?
सामान्य परिस्थितियों मे गैर-मुस्लिम माँ-बाप और अन्य गैर-मुस्लिम रिश्तेदारों के बारे मे कुरआन का आदेश क्या हैं? यह बात कुरआन मे सुनहरे शब्दों मे मौजूद हैं। अल्लाह फरमाता हैं:-
"और हमने मनुष्य को उसके माँ-बाप के सम्बन्ध में सचेत किया। उसकी माँ ने दुख पर दुख उठाकर उसको पेट में रखा और दो वर्ष में उसका दूध छुड़ाना हुआ कि तू मेरा आभार प्रकट कर और अपने माता-पिता का। मेरी ही ओर लौट कर आना है। और यदि वह दोनाे तुझे पर दबाब डालें कि तू मेरे साथ ऐसी चीज़ को साझीदार ठहराये जो तुमको ज्ञात नहीं तो उनकी बात न मानना। और संसार में उनके साथ अच्छा व्यवहार करना। और तुम उस व्यक्ति के मार्ग का अनुसरण करना जो मेरी ओर झुका हुआ है। फिर तुम सबको मेरे पास आना है। फिर मैं तुमको बता दूँगा जो कुछ तुम करते रहे।’’(कुरआन, 31:14-15)

कुरआन की इस शिक्षा पर विचार करें और निर्णय करें कि क्या मां-बाप के सम्बन्ध मे इससे ज्यादा उचित बात कोर्इ दूसरी हो सकती है? कुरआन की इन आयतों में प्रत्येक मनुष्य को अपने मां-बाप के साथ सदव्यवहार और कृतज्ञता का रवैया अपनाने की शिक्षा दी गर्इ हैं। चाहे उसके मां-बाप मुस्लिम हो या गैर-मुस्लिम और कृतज्ञता के इस रवैये को अपनाने का जो कारण बताया गया हैं, वह कारण मुस्लिम और गैर-मुस्लिम दोनो मां-बाप के साथ समान हैं। हर मॉ अपनी औलाद को कष्ट और परेशानियां उठाकर पेट में रखती है, जन्म देती और पालती-पोसती हैं। इसलिए वह अपनी औलाद की ओर से कृतज्ञता और सद्व्यवहार की वैद्य अधिकारी हैं, चाहे मां मुस्लिम हो या गैर-मुस्लिम और इसी लिए कुरआन ने औलाद को उनके साथ सदव्यवहार करने का आदेश दिया हैं।
        हाँ! कुरआन ने यह बात भी स्पष्ट कर दी हैं कि अगर तुम्हारे यही उपकारी मॉ-बाप तुम्हें गलत बातों की शिक्षा दें या गलत कामों पर उभारे तो इस मामले में उनकी बात नही माननी हैं। चाहे अल्लाह के साथ किसी को साझी ठहराने की शिक्षा हो या अन्य गलत काम । अलबत्ता उनके साथ तुम्हारा व्यवहार प्रत्येक दशा में आदर और शिष्टाचार का होना चाहिए और तुम्हें सदैव उनके साथ सद्व्यवहार करते रहना चाहिए।
इतनी उचित और बुद्धिसंगत बात से इनकार कौन कर सकता हैं? दुनिया के हर समाज और हर देश मे इस शिक्षा को मान्यता प्राप्त है, इसलिए कि दुनिया के किसी कानून में भी मां-बाप की गलत बातों को मानने को वैधता प्रदान नही की गर्इ हैं।

•कुरआन की इस बात पर आपत्ति करने वाले हमारे ये हिन्दू भार्इ अगर प्रहलाद की कथा पर विचार करते तो यह तथ्य उनपर और स्पष्ट हो जाता। प्रहलाद ओर उसकी बहन होलिका आर्यो के षडयन्त्र के शिकार हुए! विदेशी घुसपेठिए आर्यो ने अपनी तानाशाही बनानी चाही लेकिन मूलनिवासियों ने उन दुष्टों को कदापि अपना राजा स्वीकार ना किया! आर्यो ने एक भीभत्स षडयन्त्र रचके, प्रहलाद के पिता ओर उसकी बहन को मोत के घाट उतार दिया! इसी घटना की याद मे हिन्दू भार्इ हर साल होली का त्यौहार मनाते है, अगर कुरआन ने यही शिक्षा मुसलमानों को दी हैं तो हिन्दू धर्म का दावा करने वाले ये लोग कुरआन पर आपत्ति करते है, कितने आश्चर्य की बात हैं।

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