कुरआन के दृष्टिकोण से यह सारा ब्रहम्माण्ड जिस सृष्टिकर्ता ने रचा हैै वही इसका संचालक भी हैं। वह जिसको चाहता है उसको शासक बना देता हैं और जिसे चाहता है उससे शासन छीन लेता है। उसके विचारों पर कोर्इ सत्ता प्रभाव नही डाल सकती। कुरआन मे हैं:-
"तुम कहो, ऐ अल्लाह, साम्राज्य के स्वामी, तू जिसको चाहे सत्ता प्रदान करे, जिससे चाहे सत्ता छीन ले। और तू जिसको चाहे सम्मान प्रदान करे और जिसको चाहे अपमानित करे। तेरे हाथ में है सम्पूर्ण भलाई। निस्सन्देह तू हर चीज़ की सामथ्र्य रखता है।" (कुरआन 3:26 )
‘‘यह पृथ्वी अल्लाह की है, वह अपने बन्दो मे से जिसे चाहता है उसका वारिस बना देता हैं।’’ (कुरआन 7:128)
•यह हैं कुरआन की मूल विचारधारा। अब आइए राजनीति के एक-एक विषय की दृष्टि से कुरआन का अध्ययन करें।
यह बात तो अच्छी तरह साफ हो चुकी हैं कि ब्रहम्माण्ड का रचयिता हमारा पालनकर्ता अल्लाह (ईश्वर) हैं, जिसने यहां के कण-कण को पैदा किया। सारी दुनिया को बेहतरीन प्रबंध मे जकड़ दिया। उसके इस प्रबंध से यहां का एक भी कण बाहर नही जा सकता। ये सूर्य, चन्द्र, नक्षत्र, धरती और आकाश तथा दूसरी चीजे जो अपने-अपने कामों मे लगी हुर्इ हैं, एक क्षण के लिए भी अल्लाह के बंधन से अलग नही हो सकती!
यहां तक हमारे शरीर का कोर्इ अंग अपने कर्तव्य को छोड़कर दूसरा कार्य नही कर सकता। हमारा पांव चलने के लिए बना हैं, उससे कभी सोच-विचार का काम नही किया जा सकता। हाथ काम करने के लिए बना है, उससे चबाने का काम नहीं लिया जा सकता। कान सुनने के लिए बना है, उससे कभी देखने का काम नही लिया जा सकता। इसी प्रकार दूसरे अंग हैं।लेकिन अल्लाह ने अपनी मेहरबानी से हमको कुछ स्वतंत्रता दी हैं और इसी स्वतंत्रता मे हमारी परीक्षा भी हैं। अब देखना यह है कि इस स्वतंत्रता का उपयोग हम सही तरह से कर पाते हैं या नहीं। वह स्वतंत्रा क्या हैं? सुन लीजिए, वह हैं सोचने-विचारने की आजादी, जिना (व्यभिचार) तथा जुल्म करने या उससे बचने की स्वतंत्रता ।
कुरआन कहता हैं:-
‘‘हमने इंसान को मिले-जुले नुत्फे (वीर्य) से पैदा किया, ताकि उसकी परीक्षा ले। अत: हमने उसको सुनने और देखने वाला बनाया। हमने उसको मार्ग दिखा दिया, अब चाहे शुक्रगुजार हो या नाशुक्रा। हमने नाफरमानों के लिए जंजीर, बेड़ियॉ और दहकती हुर्इ आग तैयार कर रखी हैं।’’ (कुरआन 76:2-4)
•जब हमको मालूम हो गया कि हम उसके बंधन से मुक्त नहीं हो सकते तो फिर जरूरी हैं कि हम उसी के संविधान को अपनाएं उसके बताए हुए मार्ग पर चलें और दस्तूर की रचना भी नही कर सकते।
कुरआन में है:-
‘‘याद रखों उसी ने पैदा किया हैं और उसी का हुक्म भी चलता हैं।’’(कुरआन 7:54)
‘‘कहते है क्या हमारे लिए भी हुक्म देने का कुछ अधिकार हैं? कह दो हुक्म सारा का सारा अल्लाह ही का है।’’ (कुरआन 3:154)
‘‘हुक्म अल्लाह के सिवा किसी का नही, उसका हुक्म है कि तुम उसके अलावा किसी की रहनुमार्इ मत स्वीकार करो। यही सत्य मार्ग हैं, लेकिन बहुत से लोग इस बात को नही जानते।’’(कुरआन 12:40)
•यह और इसी प्रकार की दूसरी आयते यही बात बताती है कि संविधान तो उसी का होना चाहिए जिसने हमको पैदा किया, क्योकि वही हमारी जरूरतों को अच्छी तरह जान सकता हैं, क्याेकि उसको गैब (परोक्ष) का इल्म हैं।
कुरआन में हैं:-
"हो सकता है कि तुम एक चीज को नापसन्द करो और वह तुम्हारे लिए भली हो और हो सकता है कि एक चीज को तुम पसन्द करो और वह तुम्हारे लिए बुरी हो। अल्लाह जानता हैं और तुम नहीं जानते।’’ (कुरआन 2:216)
•आपको यहां यह बात खटकेगी कि एक ओर तो अल्लाह ने हमे आजादी दी, दूसरी ओर यह पाबन्दी लगार्इ जो आजादी के विरूद्ध हैं। इसका जवाब यह हैं कि आजादी का यह मतलब नही हैं इन्सान सारे कानूनों को तोड़कर अपनी मनमानी करने लगे। अगर आजादी का यही मतलब हो तो फिर मुझे कहने दीजिए कि यह आजादी नही बल्कि हैवानियत है जो हर तरह की पाबन्दियों से बरी हैं। यह भी कहने दीजिए कि अगर यही आजादी हैं तो फिर आज संसार का कोर्इ देश आजाद नही हैं। बल्कि आजादी का सही अर्थ यह है कि इन्सान अपने जैसे लोगों की गुलामी से आजाद हो जाए। अपने ऊपर अपने ही जैसे लोगो के बनाए हुए संविधान के बजाए अपने रब और पालनहार की गुलामी कबूल कर ले। यही वह सही आजादी हैं जिसकी तरफ कुरआन बुलाता हैं।
एक बात और जान लेनी चाहिए कि कुरआन का कानून दुनिया के अपने बनाए हुए कानूनों से बहुत भिन्न हैं। दुनिया का कानून इंसान अपने दिमाग से बनाता है इसलिए उसको उस पर पूरा-पूरा विश्वास नही होता, बल्कि समय के बदलने से उसका कानून भी बदलता रहता है। इसके विपरीत कुरआन का कानून हमेशा-हमेशा के लिए आया है और जिसमें किसी प्रकार का भी फेर-बदल नही हो सकता।
कुरआन में हैं:-
‘‘पालन करो उस (कानून) का जो तुम्हारे पालनकर्ता की ओर से आया हैं, उसके अलावा दूसरे संरक्षक मित्रों की रहनुमार्इ कबूल मत करो।’’
‘‘अगर तूने ज्ञान आने के बाद भी उन अज्ञानियों की ख्वाहिशों की पैरवी की तो न अल्लाह के मुकाबले में तुम्हारा कोर्इ संरक्षक मित्र होगा और न बचाने वाला। (कुरआन, 13 : 37)
•अल्लाह और उसके रसूल का हुक्म कुरआन के दृष्टिकोण से सुप्रीम हैं।इसलिए कोर्इ मुसलमान इस कानून की मुखालफत करने का अधिकार नही रखता, बल्कि उसका विरोध करने वाला र्इमान से बाहर होता हैं।
कुरआन का फरमान हैं:-
‘‘किसी र्इमान वाले मर्द ओर औरत को यह अधिकार नही हैं कि जब अल्लाह और उसके रसूल का किसी मामले मे फैसला हो तो उसके खिलाफ रवैया अपनाए और जो ऐसा करे वह खुली गुमराही मे पड़ गया। ‘‘ (कुरआन 33:36)
•कुरआन की तालीमात में जाबता अख्लाक (आचार-संहिता):-
(1)जीवन-सुरक्षा-
‘‘किसी जान को कत्ल न करो जिसके कत्ल को अल्लाह ने हराम कर दिया है सिवाय इसके कि न्याय को यही अपेक्षित हो।’’(कुरआन, 17 : 33)
(2) धन-सुरक्षा-
"अपने धन को आपस मे अवैध रूप से मत खाओं।’’(कुरआन, 2:188)
(3)मान-सुरक्षा-
‘‘कोर्इ गिरोह दूसरे का मजाक न उड़ाए और एक-दूसरे का अपमान न करे, और न ही बुरे नामों से याद करे, न कोर्इ किसी की पीठ पीछे बुरार्इ बयान करें। (कुरआन, 49 :11-12)
(4)घरेलू जीवन की सुरक्षा-
‘‘अपने घरो के सिवा दूसरों के घरों मे बिना आज्ञा दाखिल न हो।’’(कुरआन, 24 : 27)
(5)बदजुबानी पसन्द नहीं-
‘‘अल्लाह बदजुबानी को पसन्द नही करता सिवाए इसके कि किसी पर अत्याचार हुआ हुआ हों।’’ (कुरआन, 4 : 148)
(6)भलार्इ के लिए जमात बनाना-
‘‘तुम मे एक जमात होनी चाहिए जो भलार्इ का हुक्म दे और बुरार्इ से रोके, ऐसे ही लोग सफलता पा सकते हैं।’’ (कुरआन, 3 : 104)
(7) दीन (धर्म) की स्वतंत्रता-
दीन (धर्म) के विषय मे किसी पर कोर्इ जबरदस्ती नही।’’(कुरआन, 2 :256)
(8) किसी दूसरे धर्मवालों के पूज्यों को गाली मत देना-
‘‘अल्लाह को छोड़कर जिनको ये लोग पुकारते हैं उनको गालियॉ मत दो (और न अपशष्द कहो)।’' (कुरआन, 6 :108 )
(9)कोर्इ इन्सान दूसरे के कर्म पर पकड़ा नही जाएगा-
‘‘हर इन्सान जो कमार्इ करता हैं उसका वह खुद जवाबदेह हैं, कोर्इ बोझ उठाने वाला किसी दूसरे का बोझ नही उठाएगा।’’(कुरआन, 6 : 164)
(10) फैसला करने से पहले अच्छी तरह जांच-पड़ताल की जाए-
"ऐ ईमान वालो, यदि कोई अवज्ञाकरी तुम्हारे पास सूचना लाये तो तुम भली प्रकार जाँच कर लिया करो, कहीं ऐसा न हो कि तुम किसी समूह को अन्जाने में कोई हानि पहुँचा दो, फिर तुमको अपने किये पर पछताना पड़े।" (कुरआन, 49 : 6)
‘‘किसी ऐसी बात के पीछे न लग जाओ जिसका तुम्हें ज्ञान न हों।
(कुरआन, 17 : 36)
(11)राज्य की नजर मे सब बराबर हैं-
‘‘फिरऔन ने धरती मे सिर उठाया, लोगो को भिन्न-भिन्न वर्गो में बांट दिया, एक वर्ग को दुर्बल बना दिया। वह उनके बेटों को कत्ल कर देता था और उनकी औरतों को जीवित रहने देता। सही तो यह है कि वह बिगाड़ फैलाने वाला था।’’
(कुरआन 28: 4)
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