Sunday, 2 August 2015

मुसलमान किसे कहते हैं?

यदि कोर्इ प्रश्न करे कि एक वाक्य मे बताया जाए कि मुसलमान किसे कहते हैं? तो इसका उत्तर यह हैं कि ‘‘ मुसलमान वह हैं जो इस्लाम का पालन करे ‘‘ और ‘’इस्लाम क्या हैं?’’ यह पहले सविस्तार बताया जा चुका हैं!
                " मुसलमान वह है जो पवित्र कुरआन का मानने वाला, उसके अनुसार कर्म करने वाला हैं और नबी करीम (सल्ल0) के आदर्श को अपने लिए मार्ग दीप समझता है,या जिस मार्ग पर आपके उत्तराधिकारी (खुलफा-ए-राशिदीन) और आपके वंशज चले, उसका अनुसरण करता हैं।
               नीचे पवित्र कुरआन से भी मुसलमानों के कुछ गुण दर्शाए जा रहे हैं:-

"जिसने अपनी इन्द्रियों (नफ्स) को शुद्ध एवं स्वच्छ बनाया वह सफल हुआ और जिसने उनको अशुद्ध रखा, वह असफल रहा ।         - कुरआन, 91:9-10

इस से मालूम हुआ कि वही मुसलमान कहलाने के योग्य हैं जिसकी इन्द्रियो (नफ्स) पर पाप की मैल न हो।
अल्लाह के रसूल हजरत मुहम्मद (सल्ल0) के आदर्श जीवन से हमे क्या शिक्षा मिलती हैं। इसके बारे में भी कुरआन की गवाही पेश करना बहुत उचित होगा-

" यह पैगम्बर उन (अनपढ़ जाहिलो) को शुद्ध एवं स्वच्छ बनाते हैं और उनको अल्लाह की पुस्तक और ज्ञान की बाते सिखाते हैं।         -कुरआन, 62:2

इस आयत में दो शब्दों पर ध्यान देने की आवश्यकता हैं अर्थात शुद्ध और स्वच्छ बनाना और ज्ञान की बाते सिखाना। जो मनुष्य इन दोनो बातों को अपने जीवन मे सम्मिलित कर लेता हैं, वही मुसलमान कहलाने का अधिकारी हैं।

पवित्र कुरआन में भी मुसलमानों के लिए नबी करीम हजरत मुहम्मद (सल्ल0) के जीवन को आदर्श बताया गया हैं-
" लकद् का-न लकुम फी रसूलिल्लाहि उस्वतुन हसन : - कुरआन, 33:21

अर्थात:- तुम्हारे लिए अल्लाह के रसूल के जीवन में एक उच्च आदर्श रखा गया हैं"

नबी करीम के सदाचरण और नैतिक पुष्पों के संग्रह का यदि संक्षेप में वर्णन किया जाए तो यूं कह सकते हैं-
           " आप कभी किसी को बुरा न कहते थे। बुरार्इ के बदले मे बुरार्इ न करते थे, बल्कि बुरार्इ करने वाले को क्षमा कर देते थें। किसी को अभिशाप नही देते थे। आपने कभी किसी दासी या दास या सेवक को अपने हाथ से सजा नही दी, किसी की नम्रतापूर्वक मांग को कभी अस्वीकार नही किया। आपकी जबान में बड़ी मिठास थी, कभी बुरी बात अपनी जबान से नही निकालते थें। शान्तिप्रिय थे, अति सत्यवादी और र्इमानदार थे। बडे़ ही नम्र स्वभाव के सुव्यवहारशील और मित्रों से प्रेम करने वाले थें। किसी का अपमान नही करते थे, सदा सत्य का समर्थन करते थें। क्रोध को सह लेते थे। अपने व्यक्तिगत मामलों में कभी क्रोधित नही होते थे। जिन व्यक्तियों को बुरा समझते थे, उनसे भी सुशीलता एवं सुवचन का व्यवहार करते थे। जोर से हंसना बुरा समझते थे, परन्तु सदा हंसमुख और खुश रहते थें।

ये सभी गुण बिना किसी अतिश्योक्ति के वर्णित किए गए हैं, बल्कि इनका प्रमाण आपके जीवन की घटनाओं से भी मिलता हैं पवित्र कुरआन के एक वाक्य से पता लगता हैं कि इस्लाम मे नैतिकता को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया हैं। सूरा अ-ब-स में आता हैं कि एक बार अल्लाह के रसूल (सल्ल0) किसी विरोधी को समझा रह थे। कि इतने मे एक मुसलमान आया, जो अन्धा था और वह आप सल्ल0 को अपनी ओर आकर्षित करने लगा कि कुरआन का अमुक वाक्य किस प्रकार हैं, इसका अर्थ क्या हैं? आपको यह कुसमय का प्रश्न करना और वार्तालाप के बीच हस्तक्षेप बुरा मालूम हुआ और उस अन्धे पर आप नाराज हुए। उसी अवसर पर तुरन्त यह आयत उतरी, जिसका अनुवाद निम्नलिखित है-

‘‘ उसके माथे पर बल पड़ गए और ध्यान न दिया, इस कारण कि उसके पास अन्धा आया, और तुमको क्या पता कि शायद वह संवर जाता या नसीहत कबूल करता।’’ -कुरआन, 80:1-4

"इस आयत की व्याख्या की आवश्यकता नही अर्थात अल्लाह ने इस्लाम में नैतिकता के स्तर को इतना उंचा स्थान दिया हैं कि किसी व्यक्ति पर अकारण त्योरी चढ़ाना भी अल्लाह को अच्छा नही लगा।

मुसलमान मे कौन-से गुण होने चाहिए, इस्लाम के माननेवालों की वास्तविक विशेषता क्या होती है? देखिए:-

‘ऐसे लोगो जो अर्थदान करते हैं, अच्छी आर्थिक दशा में भी और कठिनार्इ में भी और गुस्से को पी जाने वाले और लोगो को क्षमा करने वाले होते हैं, अल्लाह ऐसे उपकार करने वाले को प्रिय रखता हैं । और जब वे बुरा काम कर बैठते हैं या स्वयं अपने प्रति अन्याय कर बैठते हैं, तो वे अल्लाह का स्मरण करते हैं और अपने दोषो के लिए अल्लाह से क्षमा मांगते हैं।’’        - कुरआन, 3:134-135

यह है अल्लाह का हुक्म, यह हैं इस्लाम की शिक्षा, जिसके आदेशनुसार चलकर इसकी शान को बढ़ाया जा सकता हैं।

अत: हर मुसलमान का यह कर्तव्य हैं कि वह अपने जीवन को इन गुणों से परिपूर्ण करे और देखे कि वह अल्लाह के रसूल हजरत मुहम्मद  (सल्ल0) के पद-चिन्ह पर चल रहा है या नही। कहां तक आपके आदेशों का पालन कर रहा हैं। एक मुसलमान सच्चा मुसलमान तभी हो सकता हैं, जब वह पूरी तरह से इस्लाम के अनुसार चले, जिसका आदर्श नबी (सल्ल0) ने अपने जीवन में स्थापित किया। यदि किसी मुसलमान का आचरण इसके विपरीत है तो वह समझे कि इस्लाम का अनुयायी नहीं। नबी (सल्ल0) तो वे थे जिन पर मानवता और शिक्षा शिष्टता को पूर्ण किया गया। इस्लाम की पूर्णता का अर्थ ही यह है कि मानवता और नैतिकता को उसके उच्च स्तर तक पहुचा दिया जाएगा।

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