Wednesday, 19 August 2015

कुरआन-ए-करीम है दुआओं का जखीरा!

कुरआन ए करीम मुकम्मल शिफा है हर अमराज की! अगरचे मर्ज छोटा हो या बडा, रुहानी हो या जिस्मानी! बशर्ते पक्के यकीन ओर सब्र के साथ दुआ की जाए तो अल्लाह सुब्हानहू व तआ्ला बन्दे की कोई भी दुआ रद्द नही फरमाते! लेकिन बन्दे को भी चाहिए रब से माँगा तो अपने रब की अता का मुन्तजिर हो बेसब्री या बेइत्मिनानी से काम ना ले!
             कुरआन में तमाम बिमारियो से शिफा, मुश्किलात-आफतो-बलाओं से हिफाजत, वुसअ्त-ए-रिज्क, खैर व बरकत, गुनाहों से तौबा, मग्फिरत की गुहार, नेक औलाद, फरमाबरदार बीवी, आमाल-ए-सालेहा की तौफीक, बदआमालियों  से बचने की सलाहियत! वगैरह-वगैरह बेशुमार दुआएं मौजूद हैं! बन्दा इन दुआओं को मुहजबानी (हाफिजा) याद कर ले ओर दुआ के वक्त अपने परवरदिगार की बारगाह मे हाथ फैलाकर इन आयात को पढें तो खुदा की कसम दुआ में वो असरात पैदा हो जाएं जो लफ्जों मे ब्यान करना मुमकिन नही!
मैं इस लेख मे दुआओं की कुछ आयात तरजुमे के साथ पैश करता हूँ:-

(1:-
رَبَّنَا تَقَبَّلْ مِنَّا إِنَّكَ أَنْتَ السَّمِيعُ العَلِيمُ [البقرة :127]

ऐ हमारे परवरदिगार हमारी (ये ख़िदमत) कुबूल कर बेशक तू ही (दूआ का) सुनने वाला (और उसका) जानने वाला है! (सुरह बकरह:127)

(2:-
رَبَّنَا وَاجْعَلْنَا مُسْلِمَيْنِ لَكَ وَمِن ذُرِّيَّتِنَا أُمَّةً مُّسْلِمَةً لَّكَ وَأَرِنَا مَنَاسِكَنَا وَتُبْ عَلَيْنَآ إِنَّكَ أَنتَ التَّوَّابُ الرَّحِيمُ [البقرة :128]

ऐ हमारे पालने वाले तू हमें अपना फरमाबरदार बन्दा बना हमारी औलाद से एक गिरोह (पैदा कर) जो तेरा फरमाबरदार हो, और हमको हमारे हज की जगह दिखा दे (हज के लिए हमको कुबूल फरमा) और हमारी तौबा क़ुबूल कर, बेशक तू ही बड़ा तौबा कुबूल करने वाला मेहरबान है (सुरह बकरह:128)

(3:-
رَبَّنَا آتِنَا فِي الدُّنْيَا حَسَنَةً وَفِي الآخِرَةِ حَسَنَةً وَقِنَا عَذَابَ النَّارِ [البقرة :201]

ऐ मेरे पालने वाले, मुझे दुनिया और आख़िरत की भलाई से नवाज दे और दोज़ख़ की अाग से बचा (सुरह बकरह:201)

(4:-
رَبَّنَا أَفْرِغْ عَلَيْنَا صَبْراً وَثَبِّتْ أَقْدَامَنَا وَانصُرْنَا عَلَى القَوْمِ الكَافِرِينَ [البقرة :250]

ऐ मेरे परवरदिगार हमें कामिल सब्र अता फरमा और मैदाने जंग में हमारे क़दम जमाए रख और हमें काफिरों पर फतेह इनायत कर (सुरह बकरह:250)

(5:-
رَبَّنَا لاَ تُؤَاخِذْنَا إِن نَّسِينَا أَوْ أَخْطَأْنَا [البقرة :286]

ऐ हमारे परवरदिगार अगर हम भूल जाऐं या ग़लती करें तो हमारी गिरफ्त न कर (सुरह बकरह:286)

(6:-
رَبَّنَا وَلاَ تَحْمِلْ عَلَيْنَا إِصْرًا كَمَا حَمَلْتَهُ عَلَى الَّذِينَ مِن قَبْلِنَا [البقرة :286]

ऐ हमारे परवरदिगार हम पर वैसा बोझ न डाल जैसा हमसे अगले लोगों पर बोझा डाला था (सुरह बकरह:286)

(7:-
رَبَّنَا وَلاَ تُحَمِّلْنَا مَا لاَ طَاقَةَ لَنَا بِهِ وَاعْفُ عَنَّا وَاغْفِرْ لَنَا وَارْحَمْنَا أَنتَ مَوْلاَنَا فَانصُرْنَا عَلَى الْقَوْمِ الْكَافِرِينَ [البقرة :286]

ऐ हमारे परवरदिगार इतना बोझ जिसके उठाने की हमें ताक़त न हो हमसे न उठवा और हमारे कुसूरों से दरगुज़र कर और हमारे गुनाहों को बख्श दे और हम पर रहम फ़रमा तू ही हमारा मालिक है तू ही काफ़िरों के मुक़ाबले में हमारी मदद कर (सुरह बकरह:286)

(8:-
رَبَّنَا لاَ تُزِغْ قُلُوبَنَا بَعْدَ إِذْ هَدَيْتَنَا وَهَبْ لَنَا مِن لَّدُنكَ رَحْمَةً إِنَّكَ أَنتَ الْوَهَّابُ [آل عمران:8]

ऐ हमारे पालने वाले हमारे दिल को हिदायत करने के बाद डॉवाडोल न कर और अपनी बारगाह से हमें रहमत अता फ़रमा इसमें तो शक ही नहीं कि तू बड़ा देने वाला है (सुरह आले इमरान:8)

(9:-
رَبَّنَا إِنَّكَ جَامِعُ النَّاسِ لِيَوْمٍ لاَّ رَيْبَ فِيهِ إِنَّ اللّهَ لاَ يُخْلِفُ الْمِيعَادَ [آل عمران :9]

ऐ हमारे परवरदिगार बेशक तू एक न एक दिन जिसके आने में शुब्ह (शक) नहीं लोगों को इक्ट्ठा करेगा (तो हम पर नज़रे इनायत रहे) बेशक अल्लाह अपने वायदे के ख़िलाफ़ नहीं करता (सुरह आले इमरान:9)

(10:-
رَبَّنَا إِنَّنَا آمَنَّا فَاغْفِرْ لَنَا ذُنُوبَنَا وَقِنَا عَذَابَ النَّارِ [آل عمران :16]

हमारे पालने वाले हम तो ईमान लाए हैं पस तू भी हमारे गुनाहों को बख्श दे और हमको दोज़ख़ के अज़ाब से बचा (सुरह आले इमरान:16)

(11:-
رَبَّنَا آمَنَّا بِمَا أَنزَلَتْ وَاتَّبَعْنَا الرَّسُولَ فَاكْتُبْنَا مَعَ الشَّاهِدِينَِ [آل عمران :53]

ऐ हमारे पालने वाले जो कुछ तूने नाज़िल किया हम उस पर ईमान लाए और हमने तेरे रसूल की पैरवी इख्तेयार की पस तू हमें (अपने रसूल के) गवाहों के दफ्तर में लिख ले (सुरह आले इमरान:54)

(12:-
ربَّنَا اغْفِرْ لَنَا ذُنُوبَنَا وَإِسْرَافَنَا فِي أَمْرِنَا وَثَبِّتْ أَقْدَامَنَا وانصُرْنَا عَلَى الْقَوْمِ الْكَافِرِينَِ [آل عمران :147]

ऐ हमारे पालने वाले हमारे गुनाह और अपने कामों में हमारी ज्यादतियॉ माफ़ कर और दुश्मनों के मुक़ाबले में हमको साबित क़दम रख और काफ़िरों के गिरोह पर हमको फ़तेह दे (सुरह आले इमरान:147)

(13:-
رَبَّنَا مَا خَلَقْتَ هَذا بَاطِلاً سُبْحَانَكَ فَقِنَا عَذَابَ النَّارِ [آل عمران :191]

ऐ मेरे परवरदिगार तूने इसको बेकार पैदा नहीं किया तू (फेले अबस से) पाक व पाकीज़ा है बस हमको दोज़क के अज़ाब से बचा (सुरह आले इमरान:191)

(14:-
رَبَّنَا إِنَّكَ مَن تُدْخِلِ النَّارَ فَقَدْ أَخْزَيْتَهُ وَمَا لِلظَّالِمِينَ مِنْ أَنصَارٍ [آل عمران :192]

ऐ हमारे पालने वाले जिसको तूने दोज़ख़ में डाला तो यक़ीनन उसे रूसवा कर डाला और जुल्म करने वाले का कोई मददगार नहीं (सुरह आले इमरान:192)

(15:-
رَّبَّنَا إِنَّنَا سَمِعْنَا مُنَادِيًا يُنَادِي لِلإِيمَانِ أَنْ آمِنُواْ بِرَبِّكُمْ فَآمَنَّا [آل عمران :193]

ऐ हमारे पालने वाले (जब) हमने एक आवाज़ लगाने वाले (पैग़म्बर) को सुना कि वह (ईमान के वास्ते यूं पुकारता था) कि अपने परवरदिगार पर ईमान लाओ तो हम ईमान लाए (सुरह आले इमरान:193)

(16:-
رَبَّنَا فَاغْفِرْ لَنَا ذُنُوبَنَا وَكَفِّرْ عَنَّا سَيِّئَاتِنَا وَتَوَفَّنَا مَعَ الأبْرَارِ [آل عمران :193]

पस ऐ हमारे पालने वाले हमें हमारे गुनाह बख्श दे और हमारी बुराईयों को हमसे दूर करे दे और हमें नेकों के साथ (दुनिया से) उठा ले (सुरह आले इमरान:193)

(17:-
رَبَّنَا وَآتِنَا مَا وَعَدتَّنَا عَلَى رُسُلِكَ وَلاَ تُخْزِنَا يَوْمَ الْقِيَامَةِ إِنَّكَ لاَ تُخْلِفُ الْمِيعَاد [آل عمران :194]

ऐ पालने वाले अपने रसूलों की मार्फत जो कुछ हमसे वायदा किया है हमें दे और हमें क़्यामत के दिन रूसवा न कर तू तो वायदा ख़िलाफ़ी करता ही नहीं (सुरह आले इमरान:194)

(18:-
رَبَّنَا آمَنَّا فَاكْتُبْنَا مَعَ الشَّاهِدِينَ [المائدة :83]

ऐ मेरे पालने वाले हम तो ईमान ला चुके तो (रसूल की) तसदीक़ करने वालों के साथ हमें भी लिख रख (सुरह अल माइदा:83)

(19:-
رَبَّنَا أَنزِلْ عَلَيْنَا مَآئِدَةً مِّنَ السَّمَاء تَكُونُ لَنَا عِيداً لِّأَوَّلِنَا وَآخِرِنَا وَآيَةً مِّنكَ وَارْزُقْنَا وَأَنتَ خَيْرُ الرَّازِقِينَ [المائدة :114]

ऐ हमारे पालने वाले हम पर आसमान से एक ख्वान (नेअमत) नाज़िल फरमा कि वह दिन हम लोगों के लिए हमारे अगलों के लिए और हमारे पिछलों के लिए ईद का करार पाए (और हमारे हक़ में) तेरी तरफ से एक बड़ी निशानी हो और तू हमें रोज़ी दे और तू सब रोज़ी देने वालो से बेहतर है (सुरह अल माइदा:114)

(20:-
رَبَّنَا ظَلَمْنَا أَنفُسَنَا وَإِن لَّمْ تَغْفِرْ لَنَا وَتَرْحَمْنَا لَنَكُونَنَّ مِنَ الْخَاسِرِينَ [الأعراف :23]

ऐ हमारे पालने वाले हमने अपना आप नुकसान किया और अगर तू हमें माफ न फरमाएगा और हम पर रहम न करेगा तो हम बिल्कुल घाटे में ही रहेगें (सुरह अल-आराफ़:23)

(21:-
رَبَّنَا لاَ تَجْعَلْنَا مَعَ الْقَوْمِ الظَّالِمِينَ [الأعراف :47]

ऐ हमारे परवरदिगार हमें ज़ालिम लोगों का साथी न बनाना (सुरह अल-आराफ़:47)

(22:-
رَبَّنَا افْتَحْ بَيْنَنَا وَبَيْنَ قَوْمِنَا بِالْحَقِّ وَأَنتَ خَيْرُ الْفَاتِحِينَ [الأعراف :89]

ऐ हमारे परवरदिगार तू ही हमारे और हमारी क़ौम के दरमियान ठीक ठीक फैसला कर दे और तू सबसे बेहतर फ़ैसला करने वाला है (सुरह अल-आराफ़:89)

(23:-
رَبَّنَا أَفْرِغْ عَلَيْنَا صَبْرًا وَتَوَفَّنَا مُسْلِمِينَ [الأعراف :126]

ऐ हमारे परवरदिगार हम पर सब्र (का मेंह बरसा) और हमे अपनी फरमाबरदारी की हालत में दुनिया से उठा ले (सुरह अल-आराफ़:126)

(24:-
رَبَّنَا لاَ تَجْعَلْنَا فِتْنَةً لِّلْقَوْمِ الظَّالِمِينَ ; وَنَجِّنَا بِرَحْمَتِكَ مِنَ الْقَوْمِ الْكَافِرِينَ [يونس :85-86]

ऐ हमारे पालने वाले तू हमें ज़ालिम लोगों का (ज़रिया) इम्तिहान न बना और अपनी रहमत से हमें इन काफ़िर लोगों से नजात दे! (सुर:यूनुस 85-86]

(25:-
رَبَّنَا إِنَّكَ تَعْلَمُ مَا نُخْفِي وَمَا نُعْلِنُ وَمَا يَخْفَى عَلَى اللّهِ مِن شَيْءٍ فَي الأَرْضِ وَلاَ فِي السَّمَاء [إبرهيم :38]

ऐ हमारे पालने वाले जो कुछ हम छिपाते हैं और जो कुछ ज़ाहिर करते हैं तू (सबसे) खूब वाक़िफ है और अल्लाह से तो कोई चीज़ छिपी नहीं (न) ज़मीन में और न आसमान में (सुरह इब्राहीम:38)

(26:-
رَبَّنَا وَتَقَبَّلْ دُعَاء [إبرهيم :40]

ऐ मेरे पालने वाले मेरी दुआ क़ुबूल फरमा ((सुरह इब्राहीम:40)

(27:-
رَبَّنَا اغْفِرْ لِي وَلِوَالِدَيَّ وَلِلْمُؤْمِنِينَ يَوْمَ يَقُومُ الْحِسَابُ [إبرهيم :41]

ऐ हमारे पालने वाले जिस दिन (आमाल का) हिसाब होने लगे मुझको और मेरे माँ बाप को और सारे ईमानवालों को तू बख्श दे (सुरह इब्राहीम:41)

(28:-
رَبَّنَا آتِنَا مِن لَّدُنكَ رَحْمَةً وَهَيِّئْ لَنَا مِنْ أَمْرِنَا رَشَدًا [الكهف :10]

ऐ हमारे परवरदिगार हमें अपनी बारगाह से रहमत अता फरमा-और हमारे वास्ते हमारे काम में कामयाबी इनायत कर (सुरह अल-कहफ़:10)

(29:-
رَبَّنَا إِنَّنَا نَخَافُ أَن يَفْرُطَ عَلَيْنَا أَوْ أَن يَطْغَى [طه :45]

ऐ हमारे पालने वाले हम डरते हैं कि कहीं वह हम पर ज्यादती (न) कर बैठे या ज्यादा सरकशी कर ले (सुरह ताःहाः45)

(30:-
رَبَّنَا آمَنَّا فَاغْفِرْ لَنَا وَارْحَمْنَا وَأَنتَ خَيْرُ الرَّاحِمِينَ [المؤمنون :109]

ऐ हमारे पालने वाले हम ईमान लाए तो तू हमको बख्श दे और हम पर रहम कर तू तो तमाम रहम करने वालों से बेहतर है (सुरह अल-मोमिनून:109)

(31:-
رَبَّنَا اصْرِفْ عَنَّا عَذَابَ جَهَنَّمَ إِنَّ عَذَابَهَا كَانَ غَرَامًا إِنَّهَا سَاءتْ مُسْتَقَرًّا وَمُقَامًا [الفرقان :65-66]

ऐ हमारे परवरदिगार हम से जहन्नुम का अज़ाब फेरे रहना क्योंकि उसका अज़ाब बहुत (सख्त और पाएदार होगा) बेशक वह बहुत बुरा ठिकाना और बुरा मक़ाम है (सुरह अल-फुर्क़ान:65-66)

(32:-
رَبَّنَا هَبْ لَنَا مِنْ أَزْوَاجِنَا وَذُرِّيَّاتِنَا قُرَّةَ أَعْيُنٍ وَاجْعَلْنَا لِلْمُتَّقِينَ إِمَامًا [الفرقان :74]

ऐ हमारे परवरदिगार हमें हमारी बीबियों और औलादों की तरफ से ऑंखों की ठन्डक अता फरमा और हमको परहेज़गारों का पेशवा बना (सुरह अल-फुर्क़ान:74)

(33:-
رَبَّنَا لَغَفُورٌ شَكُورٌ [فاطر :34]

बेशक हमारा परवरदिगार बड़ा बख्शने वाला (और) क़दरदान है (सुरह फ़ातिर: 34)

(34:-
آمَنُوا رَبَّنَا وَسِعْتَ كُلَّ شَيْءٍ رَّحْمَةً وَعِلْمًا فَاغْفِرْ لِلَّذِينَ تَابُوا وَاتَّبَعُوا سَبِيلَكَ وَقِهِمْ عَذَابَ الْجَحِيمِ [غافر :7]

ऐ परवरदिगार तेरी रहमत और तेरा इल्म हर चीज़ पर अहाता किए हुए हैं, तो जिन लोगों ने (सच्चे) दिल से तौबा कर ली और तेरे रास्ते पर चले उनको बख्श दे और उनको जहन्नुम के अज़ाब से बचा ले (सुरह अल-मोमिन:7)

(35:-
رَبَّنَا وَأَدْخِلْهُمْ جَنَّاتِ عَدْنٍ الَّتِي وَعَدتَّهُم وَمَن صَلَحَ مِنْ آبَائِهِمْ وَأَزْوَاجِهِمْ وَذُرِّيَّاتِهِمْ إِنَّكَ أَنتَ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ وَقِهِمُ السَّيِّئَاتِ وَمَن تَقِ السَّيِّئَاتِ يَوْمَئِذٍ فَقَدْ رَحِمْتَهُ وَذَلِكَ هُوَ الْفَوْزُ الْعَظِيمُ [غافر :8-9]

ऐ हमारे पालने वाले इन को सदाबहार बाग़ों में जिनका तूने उन से वायदा किया है दाख़िल कर और उनके बाप दादाओं और उनकी बीवीयों और उनकी औलाद में से जो लोग नेक हो उनको (भी बख्श दें) बेशक तू ही ज़बरदस्त (और) हिकमत वाला है. और उनको हर किस्म की बुराइयों से महफूज़ रख और जिसको तूने उस दिन ( क्यामत ) के अज़ाबों से बचा लिया उस पर तूने बड़ा रहम किया और यही तो बड़ी कामयाबी है (सुरह अल-मोमिन:8-9)

(36:-
رَبَّنَا اغْفِرْ لَنَا وَلِإِخْوَانِنَا الَّذِينَ سَبَقُونَا بِالْإِيمَانِ وَلَا تَجْعَلْ فِي قُلُوبِنَا غِلًّا لِّلَّذِينَ آمَنُوا [الحشر :10]

ऐ हमारे परवरदिगार हमारी और उन लोगों की जो हमसे पहले ईमान ला चुके मग़फिरत कर और मोमिनों की तरफ से हमारे दिलों में किसी तरह का कीना न आने दे (सुरह अल-हश्र:10)

(37:-
رَبَّنَا إِنَّكَ رَؤُوفٌ رَّحِيمٌ [الحشر :10]

ऐ मेरे परवरदिगार बेशक तू बड़ा शफीक़ निहायत रहम वाला है (सुरह अल-हश्र:10)

(38:-
رَّبَّنَا عَلَيْكَ تَوَكَّلْنَا وَإِلَيْكَ أَنَبْنَا وَإِلَيْكَ الْمَصِيرُ [الممتحنة :4]

ऐ हमारे पालने वाले, हमने तुझी पर भरोसा कर लिया है और तेरी ही तरफ हम रूजू करते हैं (सुरह अल-मुम्तहीना:4)

(39:-
رَبَّنَا لَا تَجْعَلْنَا فِتْنَةً لِّلَّذِينَ كَفَرُوا وَاغْفِرْ لَنَا رَبَّنَا إِنَّكَ أَنتَ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ [الممتحنة :5]

ऐ हमारे पालने वाले तू हम लोगों को काफ़िरों की आज़माइश (का ज़रिया) न क़रार दे और परवरदिगार तू हमें बख्श दे बेशक तू ग़ालिब (और) हिकमत वाला है (सुरह अल-मुम्तहीना:5)

(40:-
رَبَّنَا أَتْمِمْ لَنَا نُورَنَا وَاغْفِرْ لَنَا إِنَّكَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ [التحريم :8]

ऐ परवरदिगार हमारे लिए हमारा नूर पूरा कर और हमें बख्य दे बेशक तू हर चीज़ पर कादिर है (सुरह अत-तहरीम:8)
امین یاربل العلمین
"इलाही कुबूल फरमा"

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